Thursday, April 30, 2009

भारतीय समाज मौलिक संस्थाएं


भारतीय समाज के बारे में कई अवधार्नाये है लेकिन किसी ने इसकी मौलिक संस्था के बारे में बात नहीं की!अभी कुछ लोगो ने मुझे इस विषय पर लिखने को कहा सो प्रस्तुत है उन आकांक्षियों के लिए ये लेख-
अरस्तु ने कहा है कि "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है"!जहाँ व्यक्ति है वहां समाज भी होगा!व्यक्तियों से मिलकर समाज का निर्माण होता है!जहाँ के लोग जितने सभ्य,सुसंस्कृत,भले होंगे,वह समाज उतना ही श्रेष्ठ होगा!
भारतीय समाज एक अनुपम समाज है!जितना व्यवस्थित विभाजन और वर्गीकरण भारतीय
सामाजिक व्यवस्था में है,उतना दुनिया के किसी भी देश में नहीं है!
भारतीय समाज में तीन मौलिक संस्थाएं काम करती है!
१-गाँव
२-संयुक्त परिवार
३-जाति व्यवस्था
गाँव-गाँव शब्द का प्रयोग आदिकाल से ही किया जा रहा है तब गाँव शब्द का प्रयोग सामाजिक संबंधों को स्थायित्व प्रदान करने वाले संगठन के रूप में किया जाता था!महात्मा गाँधी ने स्वराज की कल्पना अपनी और चाहा की देश और प्रदेश अपनी राजधानियों से संचालित होने वाली राजनीति गाँवों से शुरू होकर नगर अपनी ओए विमुख हो!तभी सच्चा स्वराज आ पायेगा!

सैन्दरसन ने गाँव की परिभाषा इस प्रकार दी है-

"एक ग्रामीण समुदाय वह स्थानीय क्षेत्र है,जिसमे वहां निवास करने वाले लोगों सामाजिक सामाजिक अन्तः क्रिया और उनकी संस्थाएं सम्मिलित है,जिनमें वह खेतों के चारों ओर बिखरी झोपडियों या ग्रामों में रहते हैं और जो उनकी सामान्य गतिविधियों का केंद्र है!"

गाँव की विशेषताएँ-
१-समुदाय का छोटा आकार
२-मुख्या व्यवसाय के रूप में कृषि
३-प्रकृति में प्रत्यक्ष संवंध
४-जनसँख्या का काम घनत्व
५-सामुदायिक भावना
५-संयुक्त परिवार की प्रधानता
६-जाति व्यवस्था का महत्त्व
७-धर्म को अधिक महत्त्व
८-गतिशीलता का आभाव
९-सजातीयता
१०-आत्म निर्भरता
११-ग्राम पंचायत
१२-अशिक्षा एवं भाग्यवादिता

संयुक्त परिवार-यह गाँव की एक विशेषता भी है!

इरावती कर्वे के अनुसार-

"एक संयुक्त परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतः एक ही घर में रहते है,जो एक ही रसोई में बना भोजन करते हैं,जो संपत्ति के सम्मिलित स्वामी होते हैं तथा सामान्तः पूजा में भाग लेते हैं और जो किसी न किसी प्रकार से एक दुसरे के रक्त सम्बन्धी हों!"

आर.पी.देसाई के अनुसार-

"हम उस गृह को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमे एकाकी परिवार से अधिक पीढियों के के सदस्य रहते हैं और जिसके सदस्य एक दुसरे से संपत्ति,आय और पारस्परिक अधिकारों तथा कर्तव्यों द्वारा सम्बद्ध हों"

संयुक्त परिवार की विशेषताएँ-
१-सामान्य निवास
२-सामान्य रसोई
३-सामान्य संपत्ति
४-सामान्य पूजा
५-बड़ा आकार
६-उत्पादक इकाई
७-पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्य
८-सहयोगी व्यवस्था
९-परिवार का मुखिया
१०-बीमा इकाई
११-स्थायित्व

अब बात करें जाति व्यवस्था की!

जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं!

१-परंपरागत सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार ब्रम्हा के मुख से ब्राम्हण,भुजाओं से क्षत्रिय,जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई है!वेड,स्मृतियाँ,महाभारत आदि ग्रंथों में इसे देखा जा सकता है!

२-राजनैतिक सिद्धांत-अबे दुबोयास की मान्यता है की यह ब्राम्हणों की चतुर योजना है!ब्राह्मणों ने उच्च स्थान और विशेषाधिकारों को बनाये रखने के लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया!स्वयं के स्थान को सुरक्षित रखने के लिए क्षत्रियों को दूसरा स्थान प्रदान किया ताकि शक्ति के आधार पर वे उनकी रक्षा करते रहें!

जाति व्यवस्था अपनी विशेषताएँ-
१-परंपरागत व्यवसाय
२-सजातीय विवाह
३-खान-पान,सामाजिक सहवास आदि के नियमों का पालन
४-श्रम विभाजन
५-विशेषीकरण
६-गुण एवं स्वाभाव पर आधारित
७-कर्म एवं पुनर्जन्म अपनी धरना पर बल
आपको कैसा लगा ये लेख,आपकी प्रतिक्रियायों के इतजार में
-कृष्ण कुमार द्विवेदी

1 comment:

alka mishra said...

नहीं पूछता है कोई ,तुम व्रती ,वीर या दानी हो
सभी पूछते मात्र यही ,तुम किस कुल के अभिमानी हो
मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं
चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं
'दिनकर'