Thursday, October 6, 2011

मौत को मात...और मौत से मात

जिंदगी तो वेवफा है एक दिन ठुकराएगी...मौत महबूबा है अपनी साथ लेकर जाएगी...वाकई में कितनी सच्चाई नजर आती है...इन पंक्तियों में...जिंदगी और मौत दोनों जीवन की अमिट सच्चाई है...यथार्थ सच है...मगर डर किसी को मौत से नहीं है...तो जिंदगी कोई जीना नहीं चाहता...तो किसी को कोई जीने नहीं देता...बड़ी विडंबना है...इस दुनिया की...खैर जिंदगी और मौत के पहलू में क्या उलझना....सवाल सही गलत का है...बुराई पर अच्छाई का पर्व मनाया जा रहा है...लेकिन बुराईयां है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं...बुरहानपुर में मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई ...बुरहानपुर के बोहरडा गांव में एक अज्ञात व्यक्ति ने अपनी एक दिन की बेटी को जिंदा जमीन में गाढ़ दिया...लेकिन जैसे ही खेत मालिक अपने खेत में पहुंचा बच्ची के रोने की दुहाई भरी आवाज ने उसे झकझोर कर रख दिया....और इसके बाद उस बंदे बच्ची को ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया....जहां उसका इलाज कराया जा रहा है....इसके बाद प्रशासन और मंत्री की बारी आई...तो दोनों अस्पताल बच्ची की हालत का जायजा लेने पहुंची... डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है...तो मंत्री अर्चना चिटनीस ने आगे आते हुए...बच्ची की देखरेख की जिम्मेदारी खुद पर ली...खैर बच्ची तो बचा ली गई...लेकिन सवाल समाज पर खड़ा होने लगा...और मुख्यमंत्री की मुहिम पर भी...इतना प्रचार प्रसार करने के बाद भी लोगों पर बेटी बचाओ अभियान का असर क्यों नहीं हो रहा है....क्यों अभी तक लोग बेटी को अभिशाप मानते हैं....क्यों बेटी के लिए एक कदम आगे आते हैं....खैर बुराई है...एक दिन में खत्म नहीं हो सकती...राम रावण का युद्ध भी एक दिन में खत्म नहीं हुआ....इसके लिए राम को 14 बर्ष का वनवास झेलना पड़ा....तो दूसरी तस्वीर इंदौर के राउ की जहां अपने परिजनों का पेट पालने के लिए पटाखा फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को अनायास ही मौत की सजा मिल गई...यानि दशहरे का दिन उनके लिए काल बनकर आया....और लील ली 7 जिंदगियां....कई घायल भी हुए...जिनका इलाज इंदौर के एमवाय अस्पताल में चल रहा है...मुआवजे की घोषणा भी सरकार की तरफ से कर दी गई...लेकिन उनका क्या जो इस दुनिया में नहीं रहे....प्रशासन की लापरवाही उजागर जरुर होती है....क्यों कि राउ के 6 घरों में विस्फोटक सामग्री भी बरामद हुई है....

जिंदगी और मौत की दो अलग अलग घटनाओं में एक ने दुधमुंही को मौत देनी चाही तो उसने मौत को ही मात दे दी....लेकिन दूसरी घटना में जिनकी परिजनों को जिनकी जरुरत थी....जो परिवार को पालते थे...वो दुनिया से चले गए...मतलब साफ है....जिसकी चाहत हम रखते हैं वो मिलता नहीं...और जो मिलता है...उससे हम संतुष्ट नहीं...दो घटनाएं तो यहीं बयां कर रही है...खैर जिंदगी चलती रहती है....लेकिन दिल के रावण को मारना होगा....तभी दशहरा पर्व सही मायने में मनाना सच साबित होगा....

-कृष्ण कुमार द्विवेदी

Tuesday, October 4, 2011

जिंदगी,जंग और लाचारी....



जिंदगी,जंग और लाचारी....कैसा मेल है तीनों का...जिंदगी जीना है...तो जंग भी लड़नी पड़ेगी....इस जंग में जीते तो सिकंदर बनोगे....हारे तो लाचारी छा जाएगी...गजब का संयोग है...जिंदगी से लड़ने का माद्दा हर किसी में नहीं होता...ऐसे में अगर जीत से पहले ही मौत आ जाए...तो हालत कैसी होती है...जरा ये भी देख लीजिए...उससे पहले बेबसी की जरा ये तस्वीर देखिए...सिसक सिसक कर रो रही इस महिला पर मुफलिसी की ऐसी मार पड़ी कि सात जन्म का साथ निभाने वाला पति भी इसका साथ छोड़ गया...इतना ही नहीं गरीबी और मजबूरी में जब कोई आगे नहीं आया तो इस महिला को वो करना पड़ा जिसकी इजाजत हिंदू धर्म नहीं देता... गरीबी की ये दास्तां जशपुर के कोतबा नगर पंचायत की है..जहां मृतक हेम राम मजदूरी कर अपने परिवार की परविस करता था...लेकिन अचनाक हेम राम बीमार पड़ गया...और पैसे के अभाव में इलाज न करा पाने की वजह से उसे इस दुनिया से रुखसत होना पड़ा...लेकिन मरने के बाद भी लाचारी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा...और लड़की के अभाव में बिना चिता के ही उसका अंतिम संस्कार करना पड़ा...जानकी ने कभी नहीं सोचा था कि उसकी जिंदगी में ऐसा भी दौर आएगा...पति की मौत के बाद जानकी ने चिता की लकड़ी के लिए नगर पंचायत कोतबा के सीएमओ से भी गुहार लगाई...लेकिन यहां उसकी नहीं सुनी गई...जानकी वन विभाग के वन रक्षक के पास भी गई...लेकिन यहां भी उसे निराशा मिली...थक हार कर जानकी ने स्थानीय वार्ड पार्षदों से भी फरियाद की..लेकिन क्या मजाल कोई मदद को आगे आ जाए...कुछ ऐसा ही मामला बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर का भी है....जहां एक गरीब को चिता के लिए लकड़ियां भी नसीब नहीं हुई...मानवीयता को शर्मसार करने वाली ये घटना छतरपुर के सिंचाई कॉलोनी की है..जहां रहने वाले निरपत यादव और उसकी पत्नी की पूरी जिंदगी गरीबी के बोझ तले बीती और मरने के बाद इस बदनसीब को दो गज कफन और लकड़ी भी नसीब नहीं हुई...होती भी कैसे,जिस घर में खाने के लिए अनाज का एक दाना भी न हो भला उसकी विधवा कफन औऱ लकड़ी का इस्तेमाल कहां से करती।फिर भी घर के खिड़की दरवाजे और साइकिल के टायरों से इस वृद्द महिला ने अपने पति का अंतिम संस्कार किया।
गरीबों के हित में सरकार कई योजनाएं चलाने का दावा करती है...इन गरीबों के ऐसे अंतिम संस्कार के बाद सरकार की इन योजनाओं पर भी सवालिया निशान लगता है....