Friday, July 3, 2009

" समलैंगिक सम्बन्ध " जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा


अब वो दिन दूर नहीं जब पप्पू संग दीपू और मीनू संग सीमा की बारात आप के घरों के बगल से गुजरेगी| भई पहले सुना था पप्पू पास हो गया है लेकिन अब तो दीपू, मीनू, सीमा सभी पास हो गए हैं| अब वो एक दुसरे को फ्लाइंग किस्स देंगे और पुलिस केवल मूकदर्शक बनी देखती रहेगी| भई! अब कौन धारा 14 और 21 का उल्लंघन करे| किसी के निजी कार्य में दखल देने का किसी को अधिकार नहीं है|
बदलते ज़माने के साथ-साथ प्यार की परिभाषा भी बदल रही है| जुहू चौपाटी, विक्टोरिया पार्क में अब दो लड़के और दो लडकियां (माफ़ कीजियेगा वयस्क) इश्क लड़ायेंगे| और उनके मुह से निकलेगा " समलैंगिक सम्बन्ध " जरा जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा|

बहुत हो गयी मजाक और मस्ती...

आप और हम सभी जानते हैं कि भारत संस्कृति का देश है|लेकिन आज हमारे देश को क्या हो गया है? ऐसा लग रहा है कि पाश्चात्य संस्कृति के भी कान काट लिए गए हों| चौंकिए मत, ये समाज में चंद लोगों कि वजह से ही हुआ है| बहस का मुद्दा धारा 377| है भी बहस का विषय| 149 साल के लम्बे इतिहास में जो पहले नहीं हुआ वो 2 जून, 2009 को हो गया| समलैंगिक सम्बन्ध को क्लीन चिट दे दी गयी|
अप्राकृतिक! जिसकी भगवान ने भी मंजूरी नहीं दी किसी को| समाज आज जिस चीज को सही नहीं मानता, उसी को रजामंदी दे दी गयी| माना कि सभी को समान हक मिलना चाहिए| इसका मतलब यह तो नहीं कि जो अमानवीय कृत्य कि श्रेणी में आता है उसे नजरअंदाज कर दिया जाये| तो फिर ऐसा क्यों? यह समाज में रह रहे उन लोगों कि मानसिकताओं के साथ बलात्कार है जो कि समलैंगिक सम्बन्ध को सही नहीं मानते|

जरा सोचिये कि आने वाली पीढी पर इसका क्या असर पड़ेगा? कल तक जिस कार्य को अपराध माना जाता था, आज वो अपराध कि श्रेणी में नहीं है| शायद हम ये नहीं जानते कि ऐसे सम्बन्ध को रजामंदी देने से एड्स जैसे खतरनाक बिमारी को न्योता दे रहे हैं|

-अभिषेक राय

Tuesday, June 30, 2009

बेटी सदा ही परायी होती......


ऊपर वाले के खेल भी अजब निराले हैं!उसने जब कायनात बनाई होगी,तब एक एक मानव की जरूरत की चीजों पर गौर किया होगा जिससे वह इस मृत्युलोक में भी अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सके!जब उसक लगा कि मनुष्य अपने आपको अकेला महसूस कर रहा है,तब उसने बेटी नाम की संरचना को गढ़ा होगा!खैर गढ़ने की जरूरत ही नहीं थी,मानव जैसे ही एक और अनमोल रचना,जिसमे भावनाए,ममता,प्यार को कूट कूट कर भर दिया!इस विनाशी संसार को आगे बढ़ाने के लिए आँचल दिया,जिसकी छाँव में पलकर और दूध पीकर चलना सीखा,और अपना विकास किया!
लेकिन हमने बेटी और बेटे में अंतर पैदा किया,क्यों?त्रेतायुग में सीता,गार्गी,सुलोचना जैसी बेटियाँ पैदा हुई,ये जब तक अपने पिता के पास रहीं एक बेटी का कर्त्तव्य निभाया,जब विवाह के बाद अपने पति के घर गईं तो पत्नीव्रत धर्मं भी निभाया!लेकिन बेटी को गैर समझा जाने लगा,क्यों?कहीं न कहीं इसके पीछे मानसिकता जरूर है कि बेटी को जन्म से ही पराया धन माना जाता है,और हम लोग पराये धन पर दांव नहीं लगाते!बेटी सबसे ज्यादा अपने पिता की लाडली होती है,और माँ उसकी सबसे अच्छी दोस्त!एक पिता अपने बेटों से ज्यादा बेटी को प्यार करता है!क्यों कि एक वैज्ञानिक सत्य है कि विपरीत लिंगों के मन में एक दुसरे के प्रति आकर्षण होता है,और निश्चित रूप से बाप-बेटी का रिश्ता उससे अछूता नहीं है!बेटी के बारे में कहा जाता है कि वह अपने ससुराल पक्ष की अपेक्षा मायके पक्ष के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती है,इससे सिद्ध होता है कि बेटों की अपेक्षा माँ-बाप की सेवा बड़ी ही तन्मयता के साथ करती है!पुरुष को भावनात्मक रूप से सबसे ज्यादा मजबूत माना जाता है,लेकिन बेटी की विदाई के समय उसकी यह मजबूती पता नहीं क्यों नहीं आ पाती,और फफक कर रो पड़ता है!दुनिया के दस्तूरों में बंधकर उसे अपनी २० सालों की अमूल्य निधि पराये हाथों में सौपना पड़ती है!
लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बेटियों की संख्या में कमी आती जा रही है!बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है,या कोख में ही उनका दम घोंट दिया जाता है!ऐसा नहीं है कि इनका कत्ल होना कुछ नई बात हो!राजाओं-महाराजाओं के समय राजस्थान के राजा जन्म के समय ही बेटियों को मार डालते थे,क्यों कि उन्हें मुस्लिम शासकों के आक्रमण का डर लगा रहता था,जो उनकी बहू,बेटियों के साथ बड़ी ही पिशाचता के साथ पेश आते थे!वर्तमान दौर भी कुछ कम नहीं है,अब मुस्लिम शासकों के आक्रमण की जगह दहेज़ ने ले ली है!बेटियों की शादी के समय इतनी बड़ी रकम वरपक्ष को देनी पड़ती है,जितनी एक मजदूर वर्ग अपनी पूरी जिन्दगी में नहीं कमा पाता!और परिणाम, बेटियों की हत्या.....चाहे ससुराल पक्ष के द्वारा हो या फिर अपने पिता के हाथों,दोनों ही दशा में बेटी कि बलि ही चदायी जाती है!बुंदेलखंड में बेटियों को देवी के सदृश पूजा जाता है,यहाँ पर बेटियों के पैर छूने की प्रथा है,ऐसा शायद ही भारत के किसी हिस्से में होता हो,लेकिन भ्रूण हत्या के मामले में ये क्षेत्र भी पीछे नहीं है! कन्या भ्रूण हत्या के मामले इस कदर बढे है कि प्रति हजार पुरुषों पर केवल ९२७ महिलाये ही है! लेकिन बाप-बेटी के रिश्तों में भी दरार पड़ती नजर आ रही है,कभी बाप बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाता है,तो कभी बेटी संपत्ति और कामुक्त प्रेम में अंधे होकर अपने बाप का कत्ल कर देती है!कुछ बाप बेटी के नाम जिन्होंने एक मिशल कायम की है....
जनक-सीता
जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गाँधी
जगजीवनराम-मीरा कुमार
रीता बहुगुणा जोशी-हेमवतीनंदन बहुगुणा
अम्बिका मिश्रा-सुनील मिश्रा(मेरी मित्र)
सवाल ये है-
१-कब तक बेटी पराया धन समझी जाती रहेगी?
२-कब तक बेटियों की यूँ ही हत्या की जाती रहेगी?
३-हवस के पुजारियों के चंगुल से कब आजाद होगी?
४-कब बेटी ब्याहकर ससुराल नहीं जायेगी बल्कि दूल्हा को ब्याहकर लाएगी?
अंत में कुछ पंक्तियाँ जो मेरे पिता जी अक्सर गुनगुनाया करते हैं-"ई संसारी में विधना ने,कैसी रीति बनाई
पाल-पोश के करो बडो सो,बिटिया भाई परायी

सुघरी स्यात भाई ती पैदा,बिटिया प्यारी-प्यारी
बारी उम्र अबै लाराकैयाँ,सुदी बहुत बिचारी
रही लाडली प्रानन प्यारी,नैन पुतरिया मोई
छाती से चिपका महतारी लओ,जबन्ही जा रोई
साजन साज बाराती आ गए द्वार बजी शहनाई
पाल-पोश के.........

Thursday, May 7, 2009


मानव जीवन संघर्षों से भरा है!हर सिक्के के दो पहलू होते है,और हर पहलू की बराबर प्रायिकता!आज दुःख है तो कल सुख भी आएगा,और आज सुख है कल दुःख भी आएगा!जो पत्ते पेड़ पर लगे हैं उन्हें जमीं पर गिरना ही है!बसंत में फिर से नई कोंपलें खिलती हैं,फिर पतझड़ में सरे पत्ते धरती चूम लेते हैं!जो फूल खिला है उसे मुरझाना ही है!लेकिन नई कलियाँ खिलती हैं तो जीवन में एक आस जगाती है!जीवन के बाद मृत्यु,और मृत्यु के बाद जीवन,एक नया जन्म!एक नया रूप,नया नाम,नया चेहरा!लेकिन इन सबसे जूझते हुए सभी एक नए जीवन के लिए संघर्ष करते है,बनाते है नई राहें!
भारतीय लोकतंत्र का घमासान अपने अंतिम पड़ाव में है!फैसला जनता तो कर चुकी है,लेकिन निर्णय १६ मई को!कई बाहुबली अपने बाहुबल के दम पर चुनाव में भाग्य आजमा रहे हैं!सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का दंभ भर रहे हैं!सभी प्रधानमंत्री बनने को आतुर,सभी की हार्दिक इच्छा!लेकिन कौन बनेगा प्रधानमंत्री?कौन पायेगा ये गद्दी?नतीजा १६ को स्पष्ट हो जायेगा!
खैर जो भी बने उसके सामने चुनौती की मंदी की मार से जूझते भारत को संपन्न राष्ट्रों में शुमार करना!देश के सारी परिस्थितियों से तालमेल बैठाकर देश को चलाना होगा!बनानी होगीं नई राहें!
देश में आर्थिक मंदी से कई युवा बेरोजगार हो चुके हैं,लेकिन दिल में एक आत्मविश्वास,सभी को नए आशियाने की तलाश,जो जल्द ही पूरी होगी क्यों कि वो बनाने को तत्पर हैं नई राहें!
हमारे कॉलेज का पहला बैच अपने कॉलेज जीवन से निकलकर पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण कर रहा है!सभी जोश से लबरेज,अटूट उत्साह,एक नई उमंग!कई छात्र पहले ही पदार्पण कर चुके हैं!जिनकी धमक से पूरा भोपाल और हिंदुस्तान गूंज रहा है!और बाकी भी अपनी चमक बिखेरने को व्याकुल है!सभी पाँचवे वेद की सेवा के लिए कमर कस चुके है!ये सभी नित नई-नई ऊचाइयों को छूकर अपने क़दमों को आगे बढाते रहें!संसार के तिमिर को चीरने वाले ज्ञान के दिव्य दीपक बनें!
कहते है "चिराग तले अँधेरा"
लेकिन ये सभी उस चिराग के नीचे के तम् को दूर करेंगे,ऐसी इनसे अपेक्षा!
खैर जीव में पाना और खोना तो लगा ही रहता है,लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्त्तव्य पथ से न डिग कर मानव मात्र की सेवा करें!क्यों कि किसी ने कहा है
"कुछ खोना है कुछ पाना है
जीवन का खेल पुराना है
जब तक ये सांस चलेगी
यारा यूँ ही चलते जाना है"
सभी अपना प्रकाश पूरे हिन्दुस्तान में फैलाएं,इनकी प्रखर रश्मियों से सारा जग आलोकित हो,ऐसी हमारी आशा है!सभी पुरे संसार में बिखर जाएँ,ऐसा में इसलिए कह रहा हूँ क्यों कि मुझे महात्मा बुद्ध कि कहानी याद आ गयी!
"एक बार महात्मा बुद्ध एक गाँव में पहुचे!वहां के लोगों ने उनको गालियाँ दी,उनका अनादर किया!जाते समय भगवान् बुद्ध ने कहा-संगठित रहो!फिर दुसरे गाँव में पहुचे वहां के लोगों ने उनका आदर सत्कार किया,अच्छे लोग थे,रहने खाने की व्यवस्था की!चलते समय भगवान् ने कहा की पुरे विश्व में फ़ैल जाओ!यह सुनकर उनका एक शिष्य नाराज हो गया!भगवान् समझ गए!उन्होंने कहा कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है,मैंने ख़राब लोगों को इसलिए संगठित होने कहा जिससे दूसरे लोग उनसे प्रभावित न हो पायें और अच्छे लोगों को इसलिए बिखरने को कहा जिससे वे अपना प्रकाश सारे विश्व में फैला सकें!
यही मेरी हार्दिक इच्छा!
पत्रकारिता के क्षेत्र में पहला कदम रखने के लिए सभी लोगों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें!
खैर आप लोगों से बिछुड़ने का दुःख हमेशा महसूस होगा,क्यों कि आप हमारे सीनियर ही नहीं बड़े भाई भी हैं,लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है!इसलिए बस अपनी क्षत्र छाया सदा बनायें रखे,और जीवन के हर कदम पर हिमालय के उतुंग शिखर की भांति उचाइयां तय करें!बनाये अपनी नई राहें ......
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ.............
-कृष्ण कुमार द्विवेदी

Tuesday, May 5, 2009

आईपीएल के जलवे



बंद आंखों से आस्था का चुनावी महापर्व अपने आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। न जाने वर्ष 2009 में इस पर्व ने लोकतंत्र के कितने रंग दिखाए हैं। इन रंगों के छींटे केवल भारतीय नागरिकों पर ही नहीं ब्लकि विश्व भर के दुसरे देषों पर भी पड़े हैं। भारत एक विकासशील देशों में से एक है और विकास के नित नए आयाम भी पेश कर रहा है। लेकिन पालिटिक्स में अभी भी बौद्धिक विकास की जरूरत है। पहले तो नोटों के बंडल उछलाकर शर्मसार किया और फिर अब आईपीएल यानि इंडियन पाॅलिटिकल लीग जूते और चप्पलों की वजह से सूर्खियों में रहा। यूं कहें कि आज जनता ने अपने अभिव्यक्ति का माध्यम बदलकर जूते और चप्पल कर लिए हैं। संसद और विधानसभा में चप्पल और जूते का रिवाज तो है ही किंतु अब तो खुलेआम इसे भी लोकप्रियता मिल रही है।


लेकिन ये बेकसूर जनता ने ये कभी नहीं सोचा कि गिद्ध दृष्टि जमाए हुए इलेक्ट्राॅनिक मीडिया पल भर में सारी घटनाएं आॅन एयर कर देंगे। इनका क्या है भई। कुछ तो चटपटा होना चाहिए। ऐसा इसीलिए क्योंकि ये सारी घटनाएं विदेशी नागरिक भी देख रहे होते हैं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देष के बाहर भारत की छवि कितनी धूमिल हो सकती है। खैर इन बातों को छोड़िए। अब मंच टूटने के साथ-साथ जुबान भी बेलगाम हो गए हैं। बिना सोचे समझे कुछ भी कह गुजरते हैं नेता। कोई किसी पर बुलडोजर चला देने की बात कर रहा है तो कोई किसी को जादू की झप्पी के साथ पप्पी देने की बात कर रहा है। इसलिए राजनीति को मजाक न समझें उसमें बौद्धिक्ता लाएं क्योंकि इत्तेफ़ाक से वो देश को चलाने में सहयोग कर रहें हैं।


दुःख की बात तो यह है कि समाज जिसको अपराधी मानता है आज उन्हीं गंुडे और मवालियों को लोकतंत्र का फायदा मिल जाता है। वर्तमान के परिदृष्य को देखते हुए लगता है कि क्या वाकई में आम जनता का वोट कीमती है या महज एक औपचारिकता।


आशा करता हूं कि 16 मई को सही निर्णय आए। अभिषेक राय

Friday, May 1, 2009

जिम्मेदार कौन?

तारीख 26 अप्रैल और दिन था रविवार का। मैं अपने घर अपने गांव जा रहा था। सफर काफी लंबा था। इस नाते शरीर भी काफी थका हुआ था और मन भी। इसी पषोपेष में था कि कब अपने घर को पहुंचूंगा। मैं सीट संख्या 16 पर बैठा था कि अचानक मेरी नजर सीट संख्या 3 पर पड़ी जिसपर एक अंग्रेज बैठा था। एक समय मुझे लगा कि वो मुझसे भी ज्यादा बेबस और लाचार होगा। चूंकि उसे हमारी भाषा तो आती ही नहीं। अभिव्यक्ति ऐसे में किसी व्यक्ति की जान होती है। और जब उसकी अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाएगा तो वह अपने आपका दुर्बल महसूस करेगा। दूसरे ही पल में मैने देखा कि वही अंग्रेज अपने ठीक विपरीत शैय्या पर बैठे एक गरीब और उसके बेटे की तस्वीर खींच रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो वह गरीब का मजाक उड़ा रहा हो। हो सकता है कि मैं मुगालते में हुंगा। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर हमारे देष में कोई विदेषी पर्यटक आते हैं तो यहां कि गरीबी ही क्योें यहंा कि खुबसूरती को क्यों नहीं निहारते। हमारा देष संस्कृति का देष है। स्लमडाॅग मिलेनियर भी इसका एक जीता जागता उदाहरण है। यहंा तो फिल्म की टाइटल ही मालूम हो जा रहा है। आखिरकार इसके जिम्मेदार कौन हैं?

चुनावी महापर्व में तो दीनदयाल की तरह नेता वोट की भीख मांगने आ जाते हैं। अरे जिन नेताओं का गांव की धुल मिट्टी से कभी वास्ता नहीं है और हमेषा वातानुकूलित घरों में रहने वाले भी सिर्फ वोट बैंक के लिए गांव की भोलीभाली जनता के साथ कदमताल मिलाने लगे हैं। अगर ये नेता एक अच्छा भारत चाहते, तो ये कभी एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करते।
अभिषेक राय

Thursday, April 30, 2009

भारतीय समाज मौलिक संस्थाएं


भारतीय समाज के बारे में कई अवधार्नाये है लेकिन किसी ने इसकी मौलिक संस्था के बारे में बात नहीं की!अभी कुछ लोगो ने मुझे इस विषय पर लिखने को कहा सो प्रस्तुत है उन आकांक्षियों के लिए ये लेख-
अरस्तु ने कहा है कि "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है"!जहाँ व्यक्ति है वहां समाज भी होगा!व्यक्तियों से मिलकर समाज का निर्माण होता है!जहाँ के लोग जितने सभ्य,सुसंस्कृत,भले होंगे,वह समाज उतना ही श्रेष्ठ होगा!
भारतीय समाज एक अनुपम समाज है!जितना व्यवस्थित विभाजन और वर्गीकरण भारतीय
सामाजिक व्यवस्था में है,उतना दुनिया के किसी भी देश में नहीं है!
भारतीय समाज में तीन मौलिक संस्थाएं काम करती है!
१-गाँव
२-संयुक्त परिवार
३-जाति व्यवस्था
गाँव-गाँव शब्द का प्रयोग आदिकाल से ही किया जा रहा है तब गाँव शब्द का प्रयोग सामाजिक संबंधों को स्थायित्व प्रदान करने वाले संगठन के रूप में किया जाता था!महात्मा गाँधी ने स्वराज की कल्पना अपनी और चाहा की देश और प्रदेश अपनी राजधानियों से संचालित होने वाली राजनीति गाँवों से शुरू होकर नगर अपनी ओए विमुख हो!तभी सच्चा स्वराज आ पायेगा!

सैन्दरसन ने गाँव की परिभाषा इस प्रकार दी है-

"एक ग्रामीण समुदाय वह स्थानीय क्षेत्र है,जिसमे वहां निवास करने वाले लोगों सामाजिक सामाजिक अन्तः क्रिया और उनकी संस्थाएं सम्मिलित है,जिनमें वह खेतों के चारों ओर बिखरी झोपडियों या ग्रामों में रहते हैं और जो उनकी सामान्य गतिविधियों का केंद्र है!"

गाँव की विशेषताएँ-
१-समुदाय का छोटा आकार
२-मुख्या व्यवसाय के रूप में कृषि
३-प्रकृति में प्रत्यक्ष संवंध
४-जनसँख्या का काम घनत्व
५-सामुदायिक भावना
५-संयुक्त परिवार की प्रधानता
६-जाति व्यवस्था का महत्त्व
७-धर्म को अधिक महत्त्व
८-गतिशीलता का आभाव
९-सजातीयता
१०-आत्म निर्भरता
११-ग्राम पंचायत
१२-अशिक्षा एवं भाग्यवादिता

संयुक्त परिवार-यह गाँव की एक विशेषता भी है!

इरावती कर्वे के अनुसार-

"एक संयुक्त परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतः एक ही घर में रहते है,जो एक ही रसोई में बना भोजन करते हैं,जो संपत्ति के सम्मिलित स्वामी होते हैं तथा सामान्तः पूजा में भाग लेते हैं और जो किसी न किसी प्रकार से एक दुसरे के रक्त सम्बन्धी हों!"

आर.पी.देसाई के अनुसार-

"हम उस गृह को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमे एकाकी परिवार से अधिक पीढियों के के सदस्य रहते हैं और जिसके सदस्य एक दुसरे से संपत्ति,आय और पारस्परिक अधिकारों तथा कर्तव्यों द्वारा सम्बद्ध हों"

संयुक्त परिवार की विशेषताएँ-
१-सामान्य निवास
२-सामान्य रसोई
३-सामान्य संपत्ति
४-सामान्य पूजा
५-बड़ा आकार
६-उत्पादक इकाई
७-पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्य
८-सहयोगी व्यवस्था
९-परिवार का मुखिया
१०-बीमा इकाई
११-स्थायित्व

अब बात करें जाति व्यवस्था की!

जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं!

१-परंपरागत सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार ब्रम्हा के मुख से ब्राम्हण,भुजाओं से क्षत्रिय,जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई है!वेड,स्मृतियाँ,महाभारत आदि ग्रंथों में इसे देखा जा सकता है!

२-राजनैतिक सिद्धांत-अबे दुबोयास की मान्यता है की यह ब्राम्हणों की चतुर योजना है!ब्राह्मणों ने उच्च स्थान और विशेषाधिकारों को बनाये रखने के लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया!स्वयं के स्थान को सुरक्षित रखने के लिए क्षत्रियों को दूसरा स्थान प्रदान किया ताकि शक्ति के आधार पर वे उनकी रक्षा करते रहें!

जाति व्यवस्था अपनी विशेषताएँ-
१-परंपरागत व्यवसाय
२-सजातीय विवाह
३-खान-पान,सामाजिक सहवास आदि के नियमों का पालन
४-श्रम विभाजन
५-विशेषीकरण
६-गुण एवं स्वाभाव पर आधारित
७-कर्म एवं पुनर्जन्म अपनी धरना पर बल
आपको कैसा लगा ये लेख,आपकी प्रतिक्रियायों के इतजार में
-कृष्ण कुमार द्विवेदी

Tuesday, April 7, 2009

बापू के नाम पत्र


बापू के नाम पत्र के द्वार मैंने अपनी अभिव्यक्तियों कों प्रकट करने का तरीका अपनाया है,जिसमे रोज एक पत्र के द्वारा किसी घटना पर विश्लेषण किया जायेगा!
-कृष्ण कुमार द्विवेदी


परम पूज्य बापू जी
सादर प्रणाम
पिछले दिनों मैंने आपको भारत के बारे में विस्तार से बताया!लेकिन आज एक बड़ी घटना घटित हो गयी !बापू जी जानते हो,आज भारत के गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर एक पत्रकार ने जूता चला दिया !बापू इसे लोक्तान्यरा पर तमाचा कहा जाये या नेतागिरी पर ?खैर जिस पर भी कहें ये दोनों तरह से शर्मनाक है!लोकतंत्र पर तमाचे तो लगातार पड़ते चले आ रहे है,कभी नेताओ के द्वारा तो कभी जनता के द्वारा !लेकिन आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ने जिसमे कहीं न कहीं एक लोक भी सम्मिलित था जिसने जुटा फेंककर मार दिया!पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ का स्तम्भ होता है जो जनता को शिक्षित करने,जागरूक करने का काम करता है,लेकिन जब इस अंग ने इस घटना को अंजाम दिया तो लगा इस घटना के बाद एक पत्रकार पर उसके अन्दर छिपा एक आमजन हावी गया!कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस में गृहमंत्री जी सम्भोधित कर रहे थे!जरनैल सिंह जो कि दैनिक जागरण के संवाददाता है,ने १९८४ दंगों के आरोपियों के बारे में कुछ सवाल दागे!वे मंत्री जी के उत्तर से संतुष्ट नहीं थे या नहीं लेकिन १९८४ का दर्द उनके सीने में सुलग रहा था!और उसने अपनी भड़ास एक जूते के द्वारा निकाल दी!कारन था जगदीश टाइटलर जो आरोपी थे,और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहे है!पत्रकार महोदय का तर्क था कि सीबीआई ,गृह मंत्रयालय के अधीन होता है और गृहमंत्री जी ने आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया!आरोपी कांग्रेसी था था नहीं लेकिन वर्तमान में कांग्रेस में है,उसका टिकट निरस्त किया जाये!
चुनाव नजदीक है मंत्री जी ने तो पत्रकार बाबू को माफ़ कर दिया!चुनाव कि वजह से और सारे मीडिया की वजह से मंत्री जी तो शांत हो गए लेकिन कही न कही एक टीस जरुर रह गयी होगी कि
"वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ये जरनैल ,
हम अभी से क्या बताये क्या हमारे दिल में है "
बापू सारा मामला जिस प्रकार से था मैंने आपको बता दिया!लेकिन इस तरह की घटना पहले इराक में भी हो चुकी है!इराक के एक पत्रकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति बुश पर जूता चला दिया,उसे तीन साल की सजा हो गयी!बापू अब तो यह तरकीब "मेड इन इराक"कहलाई न!कुछ मजा नहीं आया न!हम दुसरो कि नक़ल क्यों करते है?हम अपनी तरकीब क्यों नहीं आजमाते?अब तक हम "मेड इन चाइना"और "मेड इन जापान" वाली प्रयोग करते थे,आज हमने "मेड इन इराक" का मजा भी चख लिया!
खैर इस घटना से कुछ भी फर्क न पड़ा हो लेकिन कहीं न कहीं इससे किसी समुदाय का विरोध जरुर प्रकट होता है !अब लगता है बापू जनता जागरूक होने लगी है,उनके मन में नेताओं के प्रति विरोध के स्वर मुखर हो रहे है!शायद यह जागरूकता बहुत पहले हो जानी चाहिए थी!बापू मई आपके बताये रास्ते अहिंसा का विरोध नहीं कर रहा हूँ लेकिन विरोध तो जनता कर सकती थी न!भ्रष्ट,कामचोर,दल-बदलू नेताओ को जनता का सबक जरुर मिलना चाहिए!यही विरोध सारे भारत में हो जाये तोबेह्तर हो!जब प्रत्यासी जनता के दरवाजे पर वोट मांगने जाए तो उनसे पूरे पञ्च साल का हिसाब माँगा जाये और भावी योजनाओं के बारे में अवगत कराया जाये!उसी प्रत्यासी को वोट किया जाये जो बेहतर हो!न कि जातिवाद को,वंशवाद को,क्षेत्रवाद को!
बापू मुझे एक अंदेशा लग रहा है जब अमेरिका में चुनाव हो चुके थे,नतीजा बाकी था,तब जॉर्ज बुश को जूता पड़ा था और बाद में नतीजे में बुश की पार्टी हार गयी!यहाँ तो चुनाव के पहले ही जूते चल गए,कहीं ये इनकी पार्टी की लुटिया डूबने का संकेत तो नहीं!खैर जो भी हो!नतीजे जैसे भी रहेगे!मै आपको पल पल की खबर देता रहूगा !
अब ज्यादा समय हो रहा है,मुझे कुछ कम से निकलना भी है,जब आपसे कभी मुलाक़ात होगी तो बिस्तार से चर्चा करूँगा!
अच्छा बापू अब,लेखनी को आज्ञा दीजिये!
प्रणाम

Saturday, April 4, 2009

यह खुशी के पल रजनीश जी के साथ

एक खुशी का पल जब दो मित्र हृदेश अग्रवाल और भाई रजनीशजी

लाडली


कब तलक अपनी भारत की बेटी बलि की वेदी पर चद्ती रहे...
कब तलक अपनी भारत की बेटी
बलि की वेदी पर चद्ती रहेगी
लेना देना दहेजों का छोडो
वरना इज्ज़त न कायम रहेगी
चांदी सोने के टुकडों पर बेटी
जाने कब तक बिकती रहेंगी
१-माँ के दिल में है अरमाँ मचलते
बेटी महलों की रानी बनेगी
क्या पता था की शादी से पहले
शहजादी कफ़न ओढ़ लेगी
२-उस पिता के ह्रदय से तो पूंछो
जिसके घर में है बेटी सयानी
रात दिन बस यही सोचता है
मांग बेटी की कैसे भरेगी
3-आओ मिल के शपथ ले लें हम सब
न देंगे दहेज़ न लेंगे
जब चलेंगे इसी रास्ते पर
तब गरीबी हमारी मिटेगी........
- कृष्ण कुमार द्विवेदी"किशन"

Thursday, March 19, 2009

- भुतहा मनोरंजन का डर


टेलीविजन चैनल्स में भूटिया कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गयी है!स्टार न्यूज़ पर आने वाले सनसनी कार्यक्रम पूरी तरह से होर्रोर कार्यक्रम लगता है!इसके एंकर को देख लगता है कि यह सावधान करने नहीं बल्कि कोई अपराधी ही आ गया हो !समाज में इन कार्यक्रमों से क्या प्रभाव पड़ रहा है प्रस्तुत है एक छोटी सी रिपोर्ट -

प्रमुख टेलीविजन चैनल्स
1 स्टार ग्रुप
2 जी ग्रुप
3 सोनी ग्रुप
4 सहारा ग्रुप
5 कलर
6 9 एक्स
7 बिंदास
प्रभाव-
1 बच्चों पर प्रभाव-
अ-मानसिक प्रभाव
ब-शारीरिक प्रभाव
मानसिक प्रभाव- बच्चों का मन कोमल होता है। ऐसे में उनके मन मस्तिष्क पर किसी कठोर दबाव एवं भयपूर्ण बात का इतना ज्यादा असर होता है, वे इस भय से जीवन भर नहीं उबर पाते। उनके मस्तिष्क में रह-रहकर वही बातें घूमती रहती है, जिनसे वे भयभीत रहते हैं। ज्यादातर बच्चे तंत्र-मंत्र विघा में यकीन करने लगते हैं। इस अनुसंधान विधि में मनोरोग चिकित्सकों से बात करके यह पता लगाया जाएगा कि कौन-कौन से मनोरोग, बच्चों में भय से संबंधित हो सकते हैं और उनका क्या निदान है?
शारीरिक प्रभाव- मानसिक प्रभाव से संबंधित शारीरिक प्रभाव भी है। मानिसक रूप से अविकसित बच्चे खुद को शारीरिक रूप से सबल मानते हैं और ऐसे कार्यक्रमों को देखकर वे भी कुछ अपराध करने को तत्पर हो जाते हैं। या फिर ऐसी कहानियों के पीछे क्या रहस्य है? उस रहस्य को उद्घटित करने को अधीर हो उठते है।
2- महिलाओं पर प्रभाव
अ-मानसिक प्रभाव
ब-आर्थिक प्रभाव
अ-मानसिक प्रभाव- बच्चों के बाद यदि किसी का अन्र्तमन कोमल होता है वह है महिला। महिलाएं ऐसे कार्यक्रम या कहानी देखने या सुनने के बाद भय या डर से भर जाती हैं। वे अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित हो उठती है। कई बार तो ये कहानियां किसी महिला के जीवन से थोड़ा बहुत मेल भी खा जाती है तो ऐसे में महिलाएं उस कार्यक्रम के पात्र की जगह पर खुद को रखकर सोचती हैं। ऐसे में उनका जीवन नीरस एवं बोर होने लगता है। अत्यधिक भय बढ़ जाने से एवं गुमसुम रहने से कभी-कभी उनके दाम्पत्य जीवन में भी उतार-चढ़ाव जैसे पहलू सामने आने लगते हैं।
ब-आर्थिक प्रभाव- हारर कार्यक्रमों के देखने के बाद महिलाएं बहुत ज्यादा भयभीत हो जाती हैं। खुद की गलती से या महज इत्तफाक से यदि किसी वस्तु के गिरने की आवाज आती है तो वे किसी अनिष्ट की आश्ांका व्यक्त करने लगी है और इस अनिष्ट को टालने के लिए वे सहारा लेती हैं तंत्र-मंत्र जादू टोने का। तांत्रिक उनसे इसके एवज में मोटी रकम वसूलता है। जिससे उनका आर्थिक नुकसान होता है।
3-बुजुर्गों पर प्रभाव-
अ-मानसिक प्रभाव
ब-शारीरिक प्रभाव
अ-मानसिक प्रभाव- बुजुर्ग व्यक्ति अपने भविष्य के प्रति सश्ांकित रहते हंै। ऐसे कार्यक्रम देखने पर वे अपने पुनर्जन्म एवं मोक्ष के प्रति आशंकित हो उठते हैं। वृद्धावस्था में कार्य के अभाव में वे अपने मन में भयभीत करने वाली कहानी की सोच में डूबे रहते हैं।जिसके कारण तनाव, पक्षाघात, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी जन्म लेती हैं।
ब-शारीरिक प्रभाव- कार्यक्रम के तनाव से ग्रस्त होकर सोचने की उधेड़बुन में लगे रहने से हार्ट की बीमारी होने की प्रबल संभावना होती है।
4-संस्कृति पर प्रभाव
अ-लोगों के व्यवहार में बदलाव एवं कारण-इन कार्यक्रमों से किस प्रकार लोगों का जनमानस का मानसिक स्तर, शारीरिक क्षमता प्रभावित हो रही है। यह प्रभाव नकारात्मक है या सकारात्मक, इन सारी बातों पर शोध के दौरान विश्लेषण किया जाएगा।
किस तरीके से ये कार्यक्रम उनके स्तर को उठाने या गिराने में कामयाब होती हैं और इसके बाद लोगों की क्या प्रतिक्रियाएं होती है? उनकी चपेट में कौन-कौन लोग आते हैं। सारी बातों का उल्लेख शोध के दौरान किया जाएगा।
6-चिकित्सक के पहलू- एक चिकित्सक, रोगी के सारे पहलुओं से वाकिफ होना चाहता है, ताकि वह रोगी का सफल उपचार कर सके। डरावने एवं भयावह कार्यक्रमों के प्रभाव से लोगों में कौन-कौन मनोरोग उत्पन्न हो रहे हैं। उनका निदान क्या है? उन मनोरोगों से बचने का क्या उपाय है। सारी बातों को एक चिकित्सक से वार्ता करके शोध में समाहित किया जाएगा।
7-मुख्य हारर कार्यक्रम/फिल्म एवं विश्लेषण
धारावाहिक-
1- आहट
2- शुभ कदम
3- श्री
4- श्...श कोई है
5- श्...श फिर काई है
6- ब्लेक
7- कोई आने को है
8- कहानी सत्य घटनाओं की
फिल्म-
1-राज
2-दस कहानियां
3-राज-2
3-जानी दुश्मन (पुरानी)
4-भूल भुलैया
5-13 बी
6-100 डे
7-रात
निष्कर्ष-
हारर कार्यक्रमों/फिल्मों को बनाने वाले निर्देशकों ने शायद आम जनता की नब्ज पकड़ ली है और इनकी सफलता ने यह साबित कर दिया है कि आम लोगों की कहानी चाहे वह मनगढ़त क्यों न हो, लोगों को प्रभावित करती है एवं अपनी ओर आकर्षित करती है।
मानव हृदय में सारी भावनाओं के लिए अलग-अलग कोना होता है। एक कोना इनमें से भय का भी है। भय चाहे वह अपनी असुरक्षा का हो, कैरियर की असुरक्षा का हो या सम्पत्ति की असुरक्षा का हो। व्यक्ति हमेशा सशंकित रहता है।
इन कार्यक्रमों के कारण लोगों में भय और ज्यादा व्याप्त हो गया है, अंधेरे में जाने से व्यक्ति कतराने लगा है। दरवाजे पर तनिक सी किसी की 'आहट' पाकर वह हर समय "कोई आने को है" की भावना से ग्रसित रहता है। जब उसकी पत्नी या घर का कोई सदस्य उससे कारण पूछता है तो वह "श्..श कोई है" कहकर चुप करा देता है। इन धारावाहिकों में भले ही "कहानी सत्य घटनाओं की" हो या न हो, लेकिन व्यक्ति हमेशा रात में भय से "राज " के साये में सोता है। उस के मस्तिष्क में हमेशा कम से कम "दस कहानियां"घूमती रहतीं है।
इस शोध के माध्यम से लोगों के मन का भूत हटाने के लिए प्रयत्नों एवं कारकों के बारे में बताया जाएगा।
हर घर में "श्री" के "शुभ कदम" पडेÞं, जिससे कोई भी तांत्रिक अपनी तंत्र-मंत्र से उन्हें "ब्लैक" मेल न कर सके और वे तांत्रिकों की "भूल भुलैया" में फंसने से बच सकें।

- कृष्ण कुमार द्विवेदी

Friday, March 6, 2009

होली के हुडदंग


१-बापू तेरे राज में भांति-भांति के लोग
कुछ अजगर से भी बड़े है,कुछ कालिया के है सौत

2-बुरा जो देखन मै चला,बुरा मिला न कोय
शान्ति दूतों पर हुआ हमला,इससे बुरा क्या होय

3-अजगर करें न चाकरी,पंछी करें न काम
सरकार बचाने में सबके,अलग अलग है दाम

4-पीकर दूध गाय का,चारा लियो डकार
चाहत पीएम की कुर्सी की,आवे नंबर हमार

5-राजनीति में सब जायज है,सामवेद,अर्थ,दंड
कोयला मंत्री नहीं बनूँगा,बनना है सीएम झारखंड

6-माया तोहरे गलियारे में भांति-भांति के खेल
उठापटक,धरपकड़ से लेकर,बाद में सबको बेल

7-नेता सरे फल भखें,नेता खावें खीर
निज स्वारथ के काज हित,नेता धरयौ शरीर

8-अस्थि चर्म मय देह मम,ता में ऐसी प्रीत
ब्यूटी पार्लर का कमाल है,अब चुनाव भी लेगें जीत

-कृष्ण कुमार द्विवेदी

Thursday, February 26, 2009

चमकती चमचागिरी

हमारे दैनिक जीवन में चम्मच का बहुत महत्त्व है,चम्मच न हो तो हमारे पाश्चात्य भारत के लोग दाल-भात कैसे खाएँगे?सूप का कैसे लुफ्त उठा पाएंगे?गृहणी खाना कैसे पका पाएँगी?इस समय तो शादी-विवाह का दौर चल रहा है,चम्मच की जगह चमचा का प्रयोग होना लाजिमी है!
देश भी काफी तरक्की कर रहा है,नेताओं की अनुशासनहीनता बदती जा रही है!जो जितना अनुशासनहीन है उसके उतने ही चमचे ज्यादा होंगे!फिर अपने आकाओं की चमचागिरी करके अपनी राजनीति चमकाने की तैयारी करते है!
लेकिन हद तो तब हो जाती है,जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग चमचागिरी करते है!सवाल उठता है,तब ये लोग कैसे जनता की सेवा करेंगे उनका तो ज्यादातर समय बड़े नेताओं की जी-हुजूरी में निकलता है!
लोग चाटुकारिता क्यों करते है?क्या इनमे अपने दम पर चलने की हिम्मत नहीं,या ये मानसिक रूप से विकलांग हो चुके है ?क्या खत्म हो गयी है इनकी गरिमा?क्या हम इतने असहाय हो चुके है कि हमें जुगाड़ की जरुरत पड़ने लगी,और वो भी अपनी इज्ज़त,पद प्रतिष्ठा बेंचकर!खैर जो हो गया सो हो गया,अब आगे से न हो इसलिए ये लिख रहा हूँ

१-एक बार संजय गाँधी की सभा चल रही थी,सभा खत्म होते ही संजय गांधी अपने जुटे ढूंढने लगे,उनके जूते नहीं मिल रहे थे,तभी एक व्यक्ति जूते साफ़ करके लाया और हंसते हुए रख दिए!संजय गांधी अबक रह गए!यह महाशय कोई और नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे!

२-बात उन दिनों की है जब मोहसिना किदवई उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थी,एक सभा चल रही थी,वे पान खाने के बहुत शौकीन थी!उस समय वो हैरान रह गयी जब पान की पीक थूकने के लिए एक व्यक्ति ने अपने दोनों हाथ आगे कर दिए!यह व्यक्ति बाद में प्रदेश कांग्रेस का सचिव बनाया गया!

३-राहुल गांधी के जौनपुर दौरे के समय वे उस समय परेशां हो गए जब वहां के जिलाधिकारी ने उनके पैर छुए!

४-जब झामुमो के अध्यक्ष केन्द्रीय मंत्री के पद से बेदखल हुए और प्रदेश लौटे तो वहां के जिलाधिकारी ने उनके पैर छुए.
इसे अब हम स्वामिभक्ति कहें या चाटुकारिता ?स्वामिभक्ति कह नहीं सकते,क्योंकि वहां का स्वामी कोई और है.मुखिया कोई दूसरा है,फिर क्यों ये चापलूसी?
खैर उद्देश्य चाहे कुछ भी हो,दूसरों को दिखने में भले ही बुरा लगे,लेकिन हाथ तो उनके है और सर भी उनका है,जिनके पैर लगे उनको भी अपना बनाने की कोशिश!उनकी नजर में भले ही वे सही हो,लेकिन उनके इस कारनामे ने आइएएस और आईपीएस अधिकारियों को नेताओं से निचले दर्जे का बना दिया!वे शायद भूल गए कि आइएएस और आईपीएस अधिकारी नेता बन सकते हैं लेकिन एक नेता आइएएस और आईपीएस नहीं!क्योंकि उसके लिए पढ़ा लिखा होना चाहिए और हमारे नेता पढ़े लिखे है ही नहीं!
राहुल गांधी ने भले ही कहा हो कि उनको चापलूसी पसंद नहीं,लेकिन छुटभैये नेता हाजिरी लगाने दिल्ली पहुँच रहे है!बीजेपी में अलग अलग कुनबे हैं लोगों को समझ में नहीं आता कि किसकी चापलूसी करें?
अपने भले के लिए ये नेता चापलूसी करते नजर आते हैं लेकिन जनता की सेवा के लिए इनको सांप सूंघ जाता है!
काश जनता के सेवार्थ ये अफसर और नेता चापलूसी करें तो कितना अच्छा होता..........?

- कृष्ण कुमार द्विवेदी

Sunday, February 22, 2009

एक दृश्य

हृदेश अग्रवाल
धूप के खूबसूरत टुकड़े पिघलने के लिए
कोई भी जगह हो सकती है
उसके तन पर एक जगह है
जहाँ रखे जा सकते हैं ओंठ
जहाँ रखे जा सकते हैं कुछ लफ्ज
एक सुंदर तस्वीर की तरह
सूरज डूब रहा है-
गहरे सुनहरे हो रहे हैं मन के रंग
किरणें रंग रही हैं हर

तस्वीर में एक लड़की बैठी है
अकेली निरंतर किसी तेज सफर में
शांति और गति का संगम है
उसका चेहरा दुनिया का अकेला सूर्यमुखी है

विशाल पलकें फूल खिलने की तरह उठती हैं
जीवन के सूर्योदय जैसी गतिविधियाँ
उसके ओंठ धरती के रसों को सम्हाले
उसकी लालिमा जैसे शताब्दियों के सूर्योदय
मेरी धरती का दृश्य
और मैं चल रहा हूँ।
साभार : रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति

Saturday, February 21, 2009

Shayari

1) Tere Pyaar Mein Paagal Ho Gaya Peter ....
Waah! Waah!
Tere Pyaar Mein Paagal Ho Gaya Peter ....
Waah! Waah!
Ab Hero Honda Splendor, 80 km Prati Litre .. !!

2) Bahaar Aane Se Pehle Fizaa Aa Gayii ....
Waah! Waah!
Bahaar Aane Se Pehle Fizaa Aa Gayii ....
Waah! Waah!
Phool Ko Khilne Se Pehle Bakri Kha Gayii ... !!

3) Aatma Chhod Gayii Shareer Puraana ....
Waah! Waah!
Aatma Chhod Gayii Shareer Puraana ....
Waah! Waah!
Didi Tera Devar Deewana...!!

4) Saap Ne Piya Bakri Ka Khoon ....
Waah! Waah!
Saap Ne Piya Bakri Ka Khoon ....
Waah! Waah!
Good Afternoon! Good Afternoon! Good Afternoon!!

5) Yashomati Maiyya Se Bole Nandlala ....
Yashomati Maiyya Se Bole Nandlala ....
Tata Sky Laga Daala To Life Jhingalala ..

6) Hotnon Pe “Haan” Hai .....Dil Mein “Naa” Hain ....
Hoton Pe “Haan” Hai ....Dil Mein “Naa” Hain .....
Shashi Kapoor Kehta Hai: “Mere Paas Maa Hai ....”

Tuesday, February 17, 2009

कर्मचारियों के लिए एक विशेष सामग्री

हे पार्थ (कर्मचारी)

  • हृदेश अग्रवाल

इनक्रीमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ
इनसेंटिव नहं मिला, ये भी बुरा हुआ...
वेतन में कटौती हो रही है बुरा हो रहा है....
तुम पिछले इनसेंटव ना मिलने का पश्चाताप ना करो,
तुम अगले इनसेंटिव की चिंता भी मत करो,
बस अपने वेतन में संतुष्ट रहो...
तुम्हारी जेब से क्या गया, जो रोते हो?
जो आया था सब यहीं से आया था...
तुम जब नहीं थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी,
तुम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी,
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे...
जो अनुभव मिला यहीं मिला...
जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया,
डिग्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे...
जो कम्प्यूटर आज तुम्हारा है,
यह कल किसी और का था...
कल किसी और का होगा और परसों किसी और का होगा...
तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो... क्यों खुश हो...
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है...
क्यों तुम व्यर्थ चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो,
कौन तुम्हें निकाल सकता है...?
सतत ‘नियम-परिवर्तन’ कंपनी का नियम है...
जिसे तुम ‘नियम-परिवर्तन’ कहते हो, वही तो चाल है...
एक पल में तुम बैस्ट परफॉर्मर और हीरो नंबर वन या सुपर स्टार हो जाते हो...
दूसरे पल में तुम वर्स्ट परफॉर्मर बन जाते हो और टारगेट अचीव नहीं कर पाते हो।
ऐप्रेजल, इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है, और तुम कंपनी के...
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए है
ना तुम इसके लिए हो,परन्तु तुम्हारा जॉब सुरक्षित है
फिर तुम परेशान क्यों होते हो....?
तुम अपने आप को कंपनी को अर्पित कर दो,
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता... बस मन लगाकर अपना कर्म किए जाओ
यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है
जो इस गोल्डर रूल को जानता है वो ही सुखी है...
वोह इन रिव्यू, इनसेंटिव, ऐप्रेजल, रिटायरमेंट आदि के बंधन से सदा के लिए हटा दो
तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो और खुश रहो....


“Every sucessfu’’ person have a painfu’’ story so accept............

Sunday, February 15, 2009

भारत का दुर्भाग्य

भारत को आजाद हुए 6० वर्ष हो गए हैं, लेकिन सही मायने में आजादी तभी मिलेगी तब पूरे देश में बाल मजदूरी, रोजगार, शिक्षा, सड़क, पानी, दहेज के महिलाओ पर अत्याचार होना बंद हो जायेंगे और किसी भी प्रांत के छोटे-छोटे शहर, गांव में देखा जाए तो इन सभी चीजों की बहुत आवश्यकता है...
  • हृदेश अग्रवाल

आज़ादी के बाद न जानें कितने राजनैतिक दलों ने देश पर शासन किया पर आज भी छोटी-छोटी चीजों के लिए हमें आपस में लड़ता देखा गया है कभी जात-पात, to कभी धर्म के लिए भारत जैसे विशाल देश में सरकार् ने कोई नियम बनाया है कि बाल मजदूरी पर रोक लगाई जाए यह नियम सिर्फ नाम का ही है इस अमल कोई नहीं करता आज अपने देश की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि सभी राजनैतिक दल कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य है लेकिन सिर्फ भाषणवाजी में, हकीकत में तो यह बातें सिर्फ कितावों में ही अच्छी लगती हैं क्योकि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी मुद्दे पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपनी रोटी सेकते हैं, और जनता के सामने आते ही उनके हमदर्द बन जाते हैंआज हमारे देश में बाल मजदूरी एक बहुत बड़ा मुद्दा है और हम सभी नागरिकों पर श्राप है जो हम देखते हुए भी मूक बने हुए हैं हर नागरिक कहीं न कहीं रोजाना किसी बच्चों को नौकरी करते हुए देखता है, लेकिन इन दुकान उन दुकान मालिकों के खिलाफ कोई भी आवाज़ उठाने को तैयार नहीं है क्योकि हम इतने नीचे गिरते जा रहे हैं कि उन मासूम बच्चों को नहीं देख सकते हैं 10-12 साल की उम्र में ही अपनी पढ़ाई को छोड़कर काम में लग हुए हैं कुछ होटलों पर यही कोई 10-15 साल की उम्र के बच्चे काम कर हैं, दुकान मालिक उनसे कितना काम कराते हैं उसके मुकाबले तनख्वाह कुछ नहीं देते जरा सी गलती पर उनको अपशब्द बोलते हैं बाल मजदूरी की यह समस्या कोई सरकार या कोई पुलिस नहीं सुधार सकती अगर इसको सुधारना ही होगा तो हम सबको मिलकर, क्योकि हम यही सोचते रहते हैं कि पहले सरकार करे, पुलिस करे बाद में हम, लेकिन इसी सोच ने हम सबको अपनी नज़रों में नीचे गिरा दिया है अदालत ने एक आदेश पारित किया था कि बाल मजदूरी पर रोक लगाए जाए अगर किसी दुकान या मकान में कोई बच्चा मजदूरी करते हुए पकड़ा गया तो उसको जैन और जुरमाना भरना पड़ सकता है अभी हमारे देश में फिलहाल बच्चों पर आधारित कुछ धारावाहिक चल रहे हैं जैसे बालिका वधु, उतरन इन धारावाहिकों में भी बच्चे काम कर रहे हैं जिन पर भी प्रतिबंध लगना आवश्यक है बाल मजदूरी पर न्यायालय का कड़ा रूख छोटे व्यापारी या छोटे तबके के लोगों पर ही नहीं फिल्मी दुनिया पर भी लागू होना चाहिए, लेकिन देश की गरिमा समझी जाने वाली अदालत के इस आदेश को फिल्मी दुनिया सहित आम लोगों ने नकार दिया जो न्यायालय का अपमान है

दूसरा मुद्दा

कई जगह नहीं है शिक्षा

कई गावों में आज भी स्कूल के नाम पर एक कमरा है पर जहां पर पढ़ने वाला कोई नहीं है आज भी देश के ऐसे ही हालात हैं कई शहरों में सरकार व शिक्षा विभाग का कहना है कि छोटे से छोटे गावों में भी बच्चों को शिक्षा मिल रही है, लेकिन शिक्षा के नाम पर बच्चों को स्कूलों में कुछ नहीं मिल रहा क्योकि आज के प्राचार्य छोटी जगहों पर जाना अपनी तोहीन्न समझते हैं कि हम गावों में जाकर पढायेंगे बिल्कुल नहीं, जैसे तैसे अगर चलें जाते हैं तो शिक्षा विभाग में जाकर अपना तबादला शहरों में करवा लेते हैं ऐसे ही कई स्कूल ऐसे भी हैं जहां पर केवल नाम मात्र के ही बच्चे आते हैं क्योकि उनके मां-बाप का कहना है कि बच्चों को पढाये या दो वक्त की रोटी कमाएं, अगर बच्चों को पढ़ते हैं तो घर की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से दो वक्त की रोटी पाना मुश्किल है क्योकि हमारे पास इतना पैसा नहीं कि हम पढ़ा सकें, प्राइवेट स्कूलों के संचालक फीस के नाम पर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, उन्हें नहीं मतलब कि क्या हो रहा है सरकार को चाहिए कि वह ऐसे स्कूलों की जांच के लिए एक कमेटी तैयार करे और दोषी पाए जाने पर स्कूल संचालकों पर उचित कार्यवाही कर सके सरकार नए-नए प्रावधान प्रतिदिन निकालती है पर इस पर अमल नहीं करती सरकार व संबंधित विभाग के मंत्री व sहिक्चा विभाग के सचिव को चाहिए कि वह एक बार सरकारी व अर्धसरकारी स्कूलों की रिपोर्ट भी देखना चाहिए जिससे कि स्कूलों के सही मायने में हालात मालूम सकें

तीसरा मुददा
सड़क के बिगड़ते हालत

प्रधानमंत्री सड़क योजनांतर्गत किसी भी गावों को शहरों से जोड़ा जाता है, लेकिन आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों में कई शहर एवं गावों ऐसे हैं जो आज तक खस्ताहाल बने हुए हैं सड़कों पर गाड़ी चलाना मुश्किल ही नहीं पैदल निकलना भी मुश्किल है इसके साथ ही सरकारें दावा करती हैं कि हमने देश में, प्रांत में जितना विकास किया है उतना कोई दूसरी सरकार नहीं कर सकती सत्ता पक्ष विपक्ष पर आरोप लगाता है कि प्रदेश में सड़क की समस्या है लेकिन विपक्ष जब सत्ता में आता है तो कहता है कि हमारा प्रदेश हर क्षेत्र में सफल है खासकर सड़क में वही सत्ता पक्ष कुछ दिनो पहले तक विपक्ष पर आरोप लगा रहा था कि प्रदेश में सड़कें खस्ता हाल हैं, लेकिन वही सड़क फिर उनके लिए बहुत अच्छी हो जाती हैं सरकार यह क्यों भूल जाती है कि हमने कुछ दिनों पहले क्या कहा था ज्यादा होता है तो सड़क के नाम पर कुछ सड़कें बनवा दी जाती हैं बाकी सब अगले बजट सत्र के लिए रोक दी जाती हैं जैसे कि बजट खत्म हो गया हो, लेकिन यह सब तो एक बकवास है बजट अगर विकास में लगा देंगे तो मंत्रियों की तिजोरियां कैसे भरेंगी

चोथा मुद्दा

पानी की भी प्रदेश में बहुत ज्यादा किल्लत

प्रदेश में जहां देखो वहां पर सबसे बड़ी समस्या है तो वह पानी की है क्योकि कोई भी व्यक्ति रोटी के बिना रह सकता है पर बिना पानी के नहीं लेकिन सरकार का कहना है कि हम पूरी कोशिश कर रहें हैं अगर सूखा पड़ा तो कुछ मुआवजा देकर जनता को खामोश कर दिया जाए सरकार खुद ही विज्ञापन के द्वारा कहती है कि पानी है अनमोल, फिर क्योकि चुकाती है पानी का मोल

पाचवां मुद्दा

दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित करना

देश को आजाद हुए भले ही 60 वर्ष हो गए हैं, सरकार भले ही कहती हो कि हमारे देश में महिलाएं आज पिछड़ी हुई नहीं, बल्कि मर्दों के कन्धों से कंधा मिलाकर आगे निकल चुकी हैं, महिलाएं ही हैं जो चांद तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन उसी देश में आज भी महिलाओं पर अत्याचार, दहेज के लिए प्रताड़ित करना, दलित महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करना यह कहां की परंपरा है, इससे तो वह गुलामी का समय ही अच्छा था कम से कम औरतों पर अत्याचार हाेते थे, फिर भी महिलाएं अपने आप को महफूज समझती थीं आज के दौर में तो महिलाएं अपने आप को कुछ ज्यादा ही असुरक्षित महसूस करती हैं, क्योकि महिलाओं को इस बात का डर रहता है कि आजकल ज्यादातर जॉब के नाम पर महिलाओं से गलत काम करवए जाते हैं कुछ महिलाओं ने पूरी नारी जाती को बदनाम करके रख दिया हैहमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हमारे भारत देश की प्रथम नागरिक खुद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल हैं और भारत की महिलाओं के लिए उन्हें ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे कि महिलाएं अपने आपको पहले जैसा महफूज समझे, और किसी भी स्थान पर जा सकें हमारे देश में महिला संगठन बने हुए हैं कि महिलाओं के Dपर किए गए आत्याचारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो सके और महिलाओं को आसानी से न्याय मिल सके कुछ नारियों को न्याय न मिलने की वह से उनके शासन एवं प्रशासन के प्रति आक्रोश है अभी हाल ही में एक और ताजा मामला देखने को आया जिसमें हरियाणा स्थित जिंद नामक जगह पर पुलिस विभाग के एक सब इंस्पेकटर ने एक लड़का-लड़की को सिर्फ इसलिए बुरी तरह् पीटा इतना ही नहीं उस लड़की को सरेआम सड़क पर बाल पकड़कर घसीटते हुए थाने तक लेकर गया और वहां पर खड़ी जनता ने उस पुलिस वाले या पुलिस विभाग का विरोध नहीं किया बल्कि मूक बने हुए तमाशा देखती रही वहीं सन 2008 में असम स्थित सीलिगुड़ी में देखने को मिला जिससे आदिवाशी महिलाओं को निवस्त्र कर सड़क पर पूरे नगर के सामने नंगा घुमाया गया, पुरूषों एवं पुलिस द्वारा उनको रोड पर घसीट कर मारा गया भारत में इस घिनोनी हरकत को मीडिया द्वारा दिखाया गया एवं भारत की जनता इस मूक होकर देखती रही लेकिन उन महिलाओं के प्रति किसी भी महिला संगठन, हिन्दू संगठन, सरकार या राष्ट्रपति द्वारा उन पुलिस आरोपियों के खिलाफ न तो कोई कार्यवाही हुई न ही उन्हें बर्खास्त किया गया यह है हमारे देश का कानून जो वास्तव में अंधा बना हुआ है जिसे हमारी सरकार नहीं देख सकती है

Friday, February 13, 2009

वैलेंटाइन डे परप्यार का इज़हार, उस पर बजरंग दल का प्रहार

  • हृदेश अग्रवाल

अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग

कोई प्रेम का पुजारी, कोई प्रेम के ख़िलाफ़




Thursday, February 12, 2009

संतों की वाणी

जिएं ऐसे की कल हो अंत, सिखें इतना की जीवन हो अनंत। दहेज मांगकर आप अपना सम्मान तो खोते ही हैं, साथ ही भिखारी होने का प्रमाण भी देते हैं।
क्रोध से मनुश्य दूसरों की बेइज्जती ही नहीं करता, बल्कि अपनी प्रतिश्ठा भी गंवाता है।
  • (सौजन्य से: लाला रामनारायण रामस्वरूप)