Saturday, January 8, 2011

आज भी याद है...

चार अक्षर पढने को मै आया शहर
गाँव हरपल मुझे याद आता रहा
साथ बैठे दोस्तों की वो अठखेलियाँ
वो बचपन की कृत्रिम बोलियाँ
वो बैठकर मंदिर पर बैठकर की गपवाजी कभी
लोट पोट हो जाते थे सुन कर सभी
वो मां का दुलार
वो पापा की लताड़
आज भी याद है...
वो खेतो पर जाकर मटर की फली
वो गाँव में पारो के घर की गली
चलने लगा जब घर से शहर के लिए
किसी ने मांगी दुआ,तो कोई बोला
चलो एक बला तो टली
पाकर शहर में दोस्तों का प्यार
वो मां का स्नेह वो दुलार
वो पिता की लताड़
सब कुछ मिला
मां देवकी और वसुदेव को छोड़ आया जो गाँव में
नन्द बाबा और मैया यशोदा का भी प्यार पाया
खुसनसीब हूँ कि इतना कृष्ण तो बन गया
बस अब एक कंस कि दरकार है...
सही मायने मै कृष्ण बन सकूँ.
बस यही एक चाह है....

Monday, January 3, 2011

नई सदी की ग़मगीन शाम..

नई सदी का नया सवेरा नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर... लेकिन पत्रकारिता विश्वविध्यालय का एक योद्धा दौड़ने के पहले ही कदम ठिठका कर खड़ा हो गया....दोस्तों ने कहा..तुझे चलना होगा....तुझे पत्रकारिता जगत को नया आयाम देना है...तुझे बोलना होगा...उठाना होगा...मौत से जीतना होगा....लड़ना है जमाने से....देखो पूरा विश्वविद्यालय बुला रहा है तुम्हे...उठो मनेन्द्र....चलो....परिक्षये ख़त्म हुई....घर पर सब इंतजार कर रहे है.......जाने नहीं देंगे तुझे...जाने तुझे देंगे नहीं....मां ने ख़त में क्या लिखा था...जिए तू जुग-जुग ये कहा था....चार पल भी जी न पाया तू........लेकिन वो ऐसे नीद के आगोश में सोया की फिर उठ नहीं पाया......

अभी कल की ही तो बात है,जब मैंने नई सदी का नया सवेरा की मंगल कामना की थी....मगर अफ़सोस की पत्रकारिता विश्वविद्यालय से समय ने एक ऐसा योद्धा छीना....जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता....

भोपाल के रेडक्रास अस्‍पताल में इलाज के दौरान पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय के एक होनहार छात्र हम सबको छोड़कर चला गया. वह विज्ञान पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. छात्र के सहपाठियों ने इलाज करने वाले डाक्‍टर पर गलत इंजेक्शन लगाने का आरोप लगाया है. डाक्‍टर उक्‍त छात्र की मौत हार्ट अटैक के चलते होने की आशंका जता रहे है. पुलिस ने छात्र के शव को पोस्‍टमार्टम के लिए हमीदिया अस्‍पताल भेज दिया है.

रचना नगर में रहने वाले छात्र मनेंद्र पांडेय (28 वर्ष) को अचानक सीने में दर्द हुआ. जिसके बाद उसे इलाज के लिए रेडक्रास अस्‍पताल में भर्ती कराया गया. दर्द तेज होने पर वहां मौजूद डाक्‍टर अजय सिंह ने उसे इंजेक्शन लगाया. इसके करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद मनेंद्र की मौत हो गई. मनेंद्र को इसके पहले भी सीने में दर्द हुआ था. जिसे कम करने के लिए उसने दर्द निवारक दवाएं ली थी.

पता नहीं इस नई सदी के आगाज में हम लोगो से कहाँ गलती हुई कि हमारा एक मित्र ऐसे रूठा....कि पूरा विश्वविद्यालय उसके कदमो में बैठा है...पर वह अड़ियल है....किसी कि बात नहीं मान रहा है.....वो हमसे दूर जाने की ठान चुका है....देखो कैसे हाथ छुड़ा के भाग रहा है.....कोई रोको उसे...कोई तो मनाओ.....कोई तो होगा जिसकी बात माने.....एकलव्य जी आप ही समझाए......पी.पी.सर आप ही आदेश दो इसे...आपकी बात नहीं काटेगा....

लेकिन शायद पी.पी.सर में भी अब मनेन्द्र को आदेश देने की ताकत नहीं बची....सबके गले रुंधे है....सबको मनेन्द्र से विछोह का दुःख है.....लौट आओ मनेन्द्र ...जुबान पर यही लब्ज है.....लेकिन वो जा रहा है...हम सबको अकेला छोड़कर.....

लौट आओ मनेन्द्र....हम चाय पीने चलेगे.....

कृष्ण कुमार द्विवेदी

छात्र(मा.रा.प.विवि,भोपाल)

Sunday, January 2, 2011

नई सदी का नया सवेरा

नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर...
पुराना साल,हर साल की तरह कुछ खट्टी मीठी यादें छोड़ गया...कुछ अनसुलझे सवाल,गुत्थियाँ भी...जिनको हम आगे आने वाले समय में विचार कर सकें,और सही डगर पर चल सकें.....इस साल की शुरुआत के साथ एक ख़ुशी और...की इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक की शुरुवात भी हो गई.....जैसा पहला दशक निकला समाज में कुछ विसंगतियों के साथ,कुछ नए अनुभवों के साथ गुजरा....इस दशक की एक अनसुलझी गुत्थी आरुशी हत्याकांड...जिसमे सी.बी.आई. ने भी हाथ खड़े कर दिए...इसे अपराधी की शातिरता कहें या सी.बी.आई. की नाकामी...खैर...एक उम्मीद कि ये नया दशक भी कुछ उसी तरह या उससे बेहतर साबित हो.....
मुझे याद है कि जिस समय इक्कीसवीं सदी के पहले दशक कि शुरुआत होने वाली थी,उस समय मै कक्षा सात में पढने वाला गाँव का एक भोला सा आम लड़का था...जिसकी न एक अलग सोच थी...न विचार...हाँ...नए साल से एक उम्मीद जरूर थी...कि शायद दुनिया ख़त्म नहीं होगी...क्यों कि उस समय भी ये अफवाह जोरों से चल रही थी कि १ जनवरी २००० को दुनिया ख़त्म हो जायेगी....लेकिन तर्क किसी के पास नहीं था......लेकिन समय गया...गुजरा ...दुनिया आज भी कायम है....समय आज भी अपनी गति से चलायमान है....लेकिन अब २०१२ का भी दर लोगों के ज़ेहन में है.....लेकिन हम भारतीय भी आशावादी है....हम जीतेगे....क्यों कि हम सबमे परिस्थितियों से जूझने का जज्बा है...एक दशक के बाद आज मै एक ऐसे समाज का हिस्सा बन गया हूँ...जिसे अपने अलावा समाज के हर वर्ग के बारे विचार करना पड़ता है...अपने आप में एक सुखद एहसास...हर हिन्दुस्तानी की तरह मुझे भी नए साल से ढेरों उम्मीदें है....
१-क्रिकेट का वर्ल्ड कप इस बार भारत में आएगा.
२-भारत विश्व की एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा.
३-संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता मिल जायेगी.
४-युवाशक्ति अपने होने का एहसास राजनीति में जरूर कराएगी.
५-साहित्य लेखन बढेगा.
६-पत्रकारिता के वेद व्यासों,और नारदों को सद्बुद्धि आएगी.
७-हर गरीब को रोजगार मिलेगा
8-हर बच्चे को पढने का अधिकार मिलेगा.
9-चिकित्सा के क्षेत्र में विकास होगा.
१०-हम आर्थिक रूप से भी मजबूत होंगे.
इन्ही अपेक्षाओं और उम्मीदों के साथ हम होंगे कामयाब की भावना के साथ सभी लोगों को
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं'