Saturday, January 8, 2011

आज भी याद है...

चार अक्षर पढने को मै आया शहर
गाँव हरपल मुझे याद आता रहा
साथ बैठे दोस्तों की वो अठखेलियाँ
वो बचपन की कृत्रिम बोलियाँ
वो बैठकर मंदिर पर बैठकर की गपवाजी कभी
लोट पोट हो जाते थे सुन कर सभी
वो मां का दुलार
वो पापा की लताड़
आज भी याद है...
वो खेतो पर जाकर मटर की फली
वो गाँव में पारो के घर की गली
चलने लगा जब घर से शहर के लिए
किसी ने मांगी दुआ,तो कोई बोला
चलो एक बला तो टली
पाकर शहर में दोस्तों का प्यार
वो मां का स्नेह वो दुलार
वो पिता की लताड़
सब कुछ मिला
मां देवकी और वसुदेव को छोड़ आया जो गाँव में
नन्द बाबा और मैया यशोदा का भी प्यार पाया
खुसनसीब हूँ कि इतना कृष्ण तो बन गया
बस अब एक कंस कि दरकार है...
सही मायने मै कृष्ण बन सकूँ.
बस यही एक चाह है....

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