Thursday, October 6, 2011

मौत को मात...और मौत से मात

जिंदगी तो वेवफा है एक दिन ठुकराएगी...मौत महबूबा है अपनी साथ लेकर जाएगी...वाकई में कितनी सच्चाई नजर आती है...इन पंक्तियों में...जिंदगी और मौत दोनों जीवन की अमिट सच्चाई है...यथार्थ सच है...मगर डर किसी को मौत से नहीं है...तो जिंदगी कोई जीना नहीं चाहता...तो किसी को कोई जीने नहीं देता...बड़ी विडंबना है...इस दुनिया की...खैर जिंदगी और मौत के पहलू में क्या उलझना....सवाल सही गलत का है...बुराई पर अच्छाई का पर्व मनाया जा रहा है...लेकिन बुराईयां है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं...बुरहानपुर में मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई ...बुरहानपुर के बोहरडा गांव में एक अज्ञात व्यक्ति ने अपनी एक दिन की बेटी को जिंदा जमीन में गाढ़ दिया...लेकिन जैसे ही खेत मालिक अपने खेत में पहुंचा बच्ची के रोने की दुहाई भरी आवाज ने उसे झकझोर कर रख दिया....और इसके बाद उस बंदे बच्ची को ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया....जहां उसका इलाज कराया जा रहा है....इसके बाद प्रशासन और मंत्री की बारी आई...तो दोनों अस्पताल बच्ची की हालत का जायजा लेने पहुंची... डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है...तो मंत्री अर्चना चिटनीस ने आगे आते हुए...बच्ची की देखरेख की जिम्मेदारी खुद पर ली...खैर बच्ची तो बचा ली गई...लेकिन सवाल समाज पर खड़ा होने लगा...और मुख्यमंत्री की मुहिम पर भी...इतना प्रचार प्रसार करने के बाद भी लोगों पर बेटी बचाओ अभियान का असर क्यों नहीं हो रहा है....क्यों अभी तक लोग बेटी को अभिशाप मानते हैं....क्यों बेटी के लिए एक कदम आगे आते हैं....खैर बुराई है...एक दिन में खत्म नहीं हो सकती...राम रावण का युद्ध भी एक दिन में खत्म नहीं हुआ....इसके लिए राम को 14 बर्ष का वनवास झेलना पड़ा....तो दूसरी तस्वीर इंदौर के राउ की जहां अपने परिजनों का पेट पालने के लिए पटाखा फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को अनायास ही मौत की सजा मिल गई...यानि दशहरे का दिन उनके लिए काल बनकर आया....और लील ली 7 जिंदगियां....कई घायल भी हुए...जिनका इलाज इंदौर के एमवाय अस्पताल में चल रहा है...मुआवजे की घोषणा भी सरकार की तरफ से कर दी गई...लेकिन उनका क्या जो इस दुनिया में नहीं रहे....प्रशासन की लापरवाही उजागर जरुर होती है....क्यों कि राउ के 6 घरों में विस्फोटक सामग्री भी बरामद हुई है....

जिंदगी और मौत की दो अलग अलग घटनाओं में एक ने दुधमुंही को मौत देनी चाही तो उसने मौत को ही मात दे दी....लेकिन दूसरी घटना में जिनकी परिजनों को जिनकी जरुरत थी....जो परिवार को पालते थे...वो दुनिया से चले गए...मतलब साफ है....जिसकी चाहत हम रखते हैं वो मिलता नहीं...और जो मिलता है...उससे हम संतुष्ट नहीं...दो घटनाएं तो यहीं बयां कर रही है...खैर जिंदगी चलती रहती है....लेकिन दिल के रावण को मारना होगा....तभी दशहरा पर्व सही मायने में मनाना सच साबित होगा....

-कृष्ण कुमार द्विवेदी

Tuesday, October 4, 2011

जिंदगी,जंग और लाचारी....



जिंदगी,जंग और लाचारी....कैसा मेल है तीनों का...जिंदगी जीना है...तो जंग भी लड़नी पड़ेगी....इस जंग में जीते तो सिकंदर बनोगे....हारे तो लाचारी छा जाएगी...गजब का संयोग है...जिंदगी से लड़ने का माद्दा हर किसी में नहीं होता...ऐसे में अगर जीत से पहले ही मौत आ जाए...तो हालत कैसी होती है...जरा ये भी देख लीजिए...उससे पहले बेबसी की जरा ये तस्वीर देखिए...सिसक सिसक कर रो रही इस महिला पर मुफलिसी की ऐसी मार पड़ी कि सात जन्म का साथ निभाने वाला पति भी इसका साथ छोड़ गया...इतना ही नहीं गरीबी और मजबूरी में जब कोई आगे नहीं आया तो इस महिला को वो करना पड़ा जिसकी इजाजत हिंदू धर्म नहीं देता... गरीबी की ये दास्तां जशपुर के कोतबा नगर पंचायत की है..जहां मृतक हेम राम मजदूरी कर अपने परिवार की परविस करता था...लेकिन अचनाक हेम राम बीमार पड़ गया...और पैसे के अभाव में इलाज न करा पाने की वजह से उसे इस दुनिया से रुखसत होना पड़ा...लेकिन मरने के बाद भी लाचारी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा...और लड़की के अभाव में बिना चिता के ही उसका अंतिम संस्कार करना पड़ा...जानकी ने कभी नहीं सोचा था कि उसकी जिंदगी में ऐसा भी दौर आएगा...पति की मौत के बाद जानकी ने चिता की लकड़ी के लिए नगर पंचायत कोतबा के सीएमओ से भी गुहार लगाई...लेकिन यहां उसकी नहीं सुनी गई...जानकी वन विभाग के वन रक्षक के पास भी गई...लेकिन यहां भी उसे निराशा मिली...थक हार कर जानकी ने स्थानीय वार्ड पार्षदों से भी फरियाद की..लेकिन क्या मजाल कोई मदद को आगे आ जाए...कुछ ऐसा ही मामला बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर का भी है....जहां एक गरीब को चिता के लिए लकड़ियां भी नसीब नहीं हुई...मानवीयता को शर्मसार करने वाली ये घटना छतरपुर के सिंचाई कॉलोनी की है..जहां रहने वाले निरपत यादव और उसकी पत्नी की पूरी जिंदगी गरीबी के बोझ तले बीती और मरने के बाद इस बदनसीब को दो गज कफन और लकड़ी भी नसीब नहीं हुई...होती भी कैसे,जिस घर में खाने के लिए अनाज का एक दाना भी न हो भला उसकी विधवा कफन औऱ लकड़ी का इस्तेमाल कहां से करती।फिर भी घर के खिड़की दरवाजे और साइकिल के टायरों से इस वृद्द महिला ने अपने पति का अंतिम संस्कार किया।
गरीबों के हित में सरकार कई योजनाएं चलाने का दावा करती है...इन गरीबों के ऐसे अंतिम संस्कार के बाद सरकार की इन योजनाओं पर भी सवालिया निशान लगता है....






Tuesday, March 8, 2011

मां का दूध बिकाऊ है?

मां,एक ऐसा शब्द जिसमे संसार का हर गूढ़ सार निहित है..मां..जिसने भगवान को भी जन्म दिया है...मां की ममता अपार है..वेद,पुरानों में भी मां की महिमा का बखान किया गया है...कहा जाता है...पूत कपूत भले ही हो जाए,माता नहीं कुमाता होती...मां के दूध पान करने के बाद बच्चा स्वस्थ तो रहता ही है..साथ ही मां के दिल से भी जुड़ जाता है...मुझे एक फिल्म याद आती है...दूध का क़र्ज़..जिसमे एक मां सांप के बच्चे को अपना दूध पिलाकर पालती है...वो सपोला भी बड़ा होकर मां के दूध का क़र्ज़ चुकाता है...लेकिन वर्तमान में जैसी स्थिति देखने में आ रही है..उसे देखकर लगता है...शायद ही बच्चे अपनी मां का स्तनपान कर पायें...मां की कोख तो पहले ही बिक चुकी थी..अब मां का दूध भी बिकेगा..यानि मां के दूध की बनेगी आइसक्रीम...लन्दन में पिछले शुक्रवार से बेबिगागा नाम से ये आइसक्रीम मिलने लगी है..लन्दन के कोंवेंत गार्डेन में ये आइसक्रीम मिल रही है...इस सोच को इजाद किया मैट ओ कूनीर नाम के एक सज्जन ने..इसकी कीमत १४ पोंड रखी गई है...यानि १०२२ रुपये...इसके लिए ऑनलाइन फोरम मम्सनेट के ज़रिये विज्ञापन से दूध माँगा गया था..जिसमे १५ मांओं ने अपना दूध बेंचा....यदि इसकी बिक्री ने जोर पकड़ा तो शायद दूसरे देशों से भी दूध मंगाया जाएगा...सवाल ये नहीं कि मां का दूध बिक रहा है...सवाल है कि जब मां का दूध बिकेगा तो बच्चे क्या पियेंगे..और जब मां का दूध नहीं मिलेगा उन्हें..तो उनके भविष्य की दशा और दिशा क्या होगी?क्या वे उतनी ही आत्मीयता से अपनी मां को मां कहकर पुकारेंगे...या केवल शर्तों पर आधारित रह जाएगा ये रिश्ता भी?सवाल कई ज़ेहन में है...दिमाग में कीड़े की भांति खा रही ये घटना...लेकिन ये उन साहिबानों के लिए ज़रूर उपयोगी होगी जिन्होंने मां की ममता जानी ही नहीं...मां का प्यार उनको मिला ही नहीं...मां का दूध कभी हलक के नीचे गया ही नहीं...इसी बहाने कम से कम मां के दूध का पान तो कर ही लेंगे...एक सवाल हिंदुस्तान के सन्दर्भ में...इतनी मंहगी आइसक्रीम को खरीदेगा कौन?वही लोग जिनके पास अनाप सनाप पैसा है...शोहरत है...हर ऐशो आराम है...लेकिन मां का आँचल का सुख कभी नहीं ले पाए....क्या होगा इस आइसक्रीम का?जो भी इस आइसक्रीम का स्वाद लेगा निश्चित रूप से वो उस मां का बेटा अप्रत्यक्ष तौर पर हो जाएगा...क्यों कि अगर ऐसा नहीं होता तो शायद भगवान कृष्ण माता यशोदा को मैया नहीं कहते....निश्चित रूप से व्यावसायिक दिमाग रचनात्मक होता है....अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक सोच सकता है..और उसी का नतीजा....पता नहीं क्यों मेरे मस्तिष्क में रह रह कर एक विचार आ रहा है..कि ये हमारे कर्मों का नतीजा है...हमने ज्यादा दूध निकालने के फेर में गायों के बछड़ों को दूध नहीं पीने दिया...और शायद उसका प्रतिफल अब देखने को मिलेगा..कि समाज के बच्चे मां के दूध को तरसेंगे..और मां का दूध उनकी ही आँखों के सामने बिकने विदेश जा रहा होगा.....सवाल मां की ममता का है...सवाल मां की गरिमा का है...रोक सको तो रोक लो....
-कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र(मा.रा.प.विवि,भोपाल)

Thursday, February 24, 2011

वह तोड़ता पत्थर...

उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा और पिछड़े जिला में शुमार,आल्हा ऊदल की नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त,वीर भूमि वसुंधरा के नाम से उद्बोधित..पानों का नगर..महोबा अपने में कई ऐतिहासिक तथ्यों को अपने में लीन किये है...बुंदेलखंड क्षेत्र से सबसे ज्यादा मंत्री होने के बावजूद ये जिला अपने काया कल्प और विकास के लिए आज भी सरकारी बाट जोह रहा है...पता नहीं कब तस्वीर बदलेगी..इस क्षेत्र की..यहाँ के नुमाइंदों की...खैर आज राजनैतिक बातें नहीं...मुद्दे की बात..
जिसने लोगों की सेवा में लगा दिया अपना बचपन .. जिले से राज्य और फिर राष्ट्र स्तर के बटोरे ढेरों पुरस्कार....जिस पर राष्ट्रपति भी हो गए निहाल..और दिया राष्ट्रपति सम्मान..जो बना युवाओं का आदर्श...मगर अफ़सोस कि वो मुफलिसी से हार गया..पेट की भूंख और रिश्तों के निर्वहन के दायित्व ने उसे तोड़ कर रख दिया..विधवा मां की बीमारी और तंगहाली से जूझने की राह ढूंढने में नाकाम हो गया वो.. लेकिन अभी भी उसमे हौसला है..उसको है अपनी जिम्मेदारियों का एहसास...जिसके लिए वो गिट्टी तोड़ने में हाड़तोड़ मेहनत कर वह अपनी पढ़ाई भी करता है और बीमार मां व बहन की परवरिश भी... मां के इलाज व बहन की शादी के लिये पैसे से लाचार ये कर्मवीर अब इस उधेड़बुन में है कि किसी तरह बहन के हाथ पीले करे..
इस कर्म योद्धा की कहानी सुनकर मुझे एक गीत कि पंक्तियाँ याद आती हैं...
बचपन हर गम से बेगाना होता है...
मगर कबरई कस्बे के राजेंद्र नगर के निवासी 17 साल के श्यामबाबू को नहीं पता कि बचपन क्या होता है...इसके होश संभालने के पहले पिता का साया इसके ऊपर से उठ चुका था..जिस उम्र में इसे अपने हम उम्र साथियों के साथ खेलना चाहिए था..उस समय इसके हाथ अपने परिवार को पालने के लिए हथौड़ा चलाते लगे... जब इसको अपना जीवन संवारना चाहिए तो इसे अपनों की रुश्वाइयों का शिकार होना पड़ा....बड़े भाई ने बीमार मां व छोटे भाई बहनों को छोड़ अपनी अलग दुनिया बसा ली...न रहने को मकान था और न एक इंच जमीन, कोई रोजगार भी नहीं.. इन कठिन हालात में इस कर्मवीर ने कस्बे के पत्थर खदानों में हाड़तोड़ मेहनत कर स्वयं मां व छोटे भाई बहनों की रोटी तलाश की...समाजसेवा का जज्बा होने के कारण अध्ययन के दौरान विविध गतिविधियों में हिस्सा ले खुद को तपाया...स्काउट गाइड, रेडक्रास सोसायटी, राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम, राजीव गांधी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम जैसे तमाम आयोजनों में इस मेधा को प्रशिस्त पत्र दे सम्मानित किया गया...सम्मान और पुरस्कारों का क्रम जिले से शुरू हो राज्य और राष्ट्र स्तर तक पहुंचा...12 साल की उम्र में राज्यपाल टीवी राजेश्वर और 14 जुलाई 10 को राष्ट्रपति ने स्काउट गाइड के रूप में बेहतर सेवा के लिये इसे सम्मानित किया.... राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित यह किशोर अभी भी पत्थर खदानों में मजदूरी कर रहा है... बीमार मां के इलाज और सयानी बहन की शादी कैसे हो यह सवाल उसे खाये जा रहा है...हर पल उसे चिंता की आग में जला रहा है... जिले का गौरव बढ़ाने वाले इस किशोर के पास रहने को झोपड़ी तक नहीं...अब तक नाना नानी के घर में शरणार्थी की तरह रहने वाले इस परिवार को अब वहां भी आश्रय नहीं मिल पा रहा है... जिले से राष्ट्रीय स्तर तक तमाम प्रतियोगिताएं जीत चुका यह किशोर असल जिंदगी की प्रतियोगिता का मुकाम हासिल नहीं कर पा रहा है.. शादी योग्य बहन के हाथ पीले न कर पाने की लाचारी में वह इसे देख निगाहें झुका लेने को मजबूर है..राज्य स्तर के ढेरों पुरस्कारों व स्काउट गाइड में राष्ट्रपति से सम्मानित श्यामबाबू को किसी सरकारी योजना में शामिल नहीं किया गया... इसके पास न रहने को घर है न एक इंच भूमि... परिवार में कोई कमाने वाला भी नहीं... हद यह कि इस परिवार को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन का कार्ड भी हासिल नहीं हुआ... प्रशासन चाहता तो कांशीराम आवास योजना के तहत इसे छत तो दे ही सकता था पर वह भी नसीब नहीं हुई... इंदिरा और महामाया आवास भी नहीं मिले... हालात से जाहिर है जिले में ऐसे जरूरतमंद उंगलियों में गिनने लायक ही होंगे.... लेकिन ऐसे इन्हीं लोगों को जब छत और रोजगार न मयस्सर हो तो फिर सरकारी योजनाओं का लाभ किसे दिया जा रहा है....अपने आप में एक बड़ा सवाल है....
प्रतिभा तोडती पत्थर या पत्थरों से टूटती प्रतिभा इसे क्या कहा जाए..आप खुद सोचिये..

Thursday, February 17, 2011

हम उपभोक्ता नहीं निर्माता हैं...

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना,गिरकर चड़ना न अखरता है
.......
हरिवंशराय बच्चन की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ गई...
राजधानी भोपाल के पास एक ग्राम पंचायत कुकरीपुरा का गाँव त्रिवेणी...जिसमे लोगों की मदद और सरकारी योजना के चलते बिजली से जगमग हो गया...एक ओर जहाँ राज्य सरकार केंद्र सरकार पर कोयला न देने का आरोप लगा रही है...और बिजली की कमी का रोना रो रही है....तो दूसरी ओर ग्रामीणों का सकारात्मक प्रयास से गाँव बिजली से रोशन हो गया...वहीँ त्रिवेणी के आसपास के गाँव अँधेरे में डूबे रहते है....करीब छह सौ की आबादी वाला ये गाँव जिसमे आधे से ज्यादा घरों के शौचालयों के टैंक सीवर लाइन से जोड़े गए...और फिर केंद्र सरकार की ग्रामीण स्वच्छता योजना के तहत इस मल से बायो गैस के ज़रिये बिजली उत्पादन किया जा रहा है...करीब ५ मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है इस गाँव में...गाँव के लोग अब बिजली के लिए अँधेरे में एक दूसरे का मुंह नहीं तकते हैं...बल्कि इस बिजली से गलियों में ट्यूब लाईट जलाई जाती है...किसी की शादी विवाह में भी रोशनी के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है...सामुदायिक भवन भी रोशन हो रहा है...गाँव वालों का कहना है कि अभी जब पूरे घरों के सीवर टैंक इससे जुड़ जायेगे तो उत्पादन और बढ़ जायेगा..अब ग्रामीण न केवल टेलीवीजन चलाते हैं बल्कि एफ.एम. का आनंद भी लेते है....खैर...मेहनत तो रंग लाती ही है...बस जरूरी होता है ज़ज्बा..जोश..जूनून...और काम के प्रति लगन...
आप मेरी तकदीर क्या लिखेगें दादू?वो मेरी तकदीर है..जिसका नाम है विधाता....संजय दत्त का ये डायलोग विधाता फिल्म का याद आ गया....इस गाँव को देख कर क्या कहू...समझ नहीं आ रहा है...इतना खुश हूँ कि गाँव में रहने वाले दीन हीन लोग भी अब अपनी तरक्की के लिए आगे आ रहे हैं...और अपने विकास की इबारत भी खुद ही लिख रहे हैं....बस यही ज़ज्बा सब में आ जाये तो हिंदुस्तान को विकसित राष्ट्र बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा....

Wednesday, February 16, 2011

हर्ष ने दिया दुःख

दुश्मनों ने तो ज़ख्म देने ही थे, ये उनकी फितरत थी,

दोस्तों ने भी जब दगा की, यह हमारी किस्मत थी!

कल शाम जब मेरे एक मित्र का सन्देश मेरे मोबाइल पर आया...तब अनायास ही ये शब्द लिख कर भेजे थे मैंने उसे...अचानक ही निकला था मेरे मन से ये शेर...नहीं जानता था कि आज मेरे अपने ही मुझे जुदाई का गम देने वाले हैं....समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस साल कि शुरुवात में हमसे क्या गलती हुई...कि ये नीली चादर वाला भी मेरे हांथो की मजबूती जो मेरे मिरता हैं..एक एक कर छीनता जा रहा है...जनवरी के महीने में मनेन्द्र....और अब मेरे जीवन से यमराज हर्ष भी छीन कर ले गया...बड़ा प्यारा था वो...एक दम गोल मटोल गोलू की तरह...सम्मान में झुकता तो ऐसे था लगता था अगर हाथ नहीं रखा तो वही स्थिति बना कर रखेगा...मेरी चौथी पीढ़ी का सदस्य था वो....ज्यादा तो मुलाकात नहीं हुई...मगर जितनी भी बार हुई...दिल जीत लिया था उसने...मगर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था....

पीपुल्स पत्रकारिता शिक्षण संस्थान का बी.एस.सी प्रथम वर्ष के दो छात्र हर्ष शर्मा और प्रकाश पांडे...जो भोपाल में अयोध्या बाय पास रोड से कॉलेज की ओर आ रहे थे...अचानक एक ट्रक से हुई टक्कर से हर्ष की जिंदगी की रफ़्तार मौके पर ही रुक गई...जबकि प्रकाश अभी भी जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है...दुर्घटना इतनी भयावह थी कि प्रकाश के शरीर से मांस के लोथड़े निकल गए..कल कि ही बात है एक सोशल साईट पर मेरे पास मित्रता के लिए अर्जी भेजी थी....शाम को जब हर्ष के पिता उसे देखने आये...तो बेटे का चेहरा देखने की ताक़त उनमे नहीं थी...आँख से आंसू का एक भी कतरा नहीं गिरा...पर दिल बहुत रोया....पता नहीं मेरे मित्रों को किसकी नज़र लग गई...सवाल कॉलेज पर उठता है कि जब कॉलेज का समय १० बजे से शाम ५ तक है...तो ३.३० बजे ये छात्र बाहर कैसे निकले....खैर होनी को कौन टाल सकता है...मौत कोई न कोई बहाना लेकर आती है...कल जब हर्ष से मेरे मित्रों ने कहा कि बाइक के ब्रेक ठीक करा लेना...तो जानते हो क्या जवाब था उसका...भैया मौत ही तो होगी...इससे ज्यादा क्या...और सच कर दिया उसकी बात को ईश्वर ने...लोगों ने डांटा भी...ऐसा नहीं कहते...लेकिन गर्म खून कब शांत होता है...और पत्रकारिता जगत का एक और नाविक बिना नाव को खेये चला गया...मैं अब भी इस घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ...लेकिन सच का घूँट तो पीना पड़ेगा...स्वीकार तो करना पड़ेगा...भीगी पलकों और रुंधे गले से एक गुजारिश अपने नव युवक साथियों से जरूर करूँगा..कि जब भी बाइक चलाये धीमी गति से चलाये...पूरी सावधानी से चले...अपने जीवन के लिए...अपने परिवार के लिए...और दोस्तों अपने इस नाचीज मित्र के लिए...मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरा अब कोई अंग क्षतिग्रस्त हो...जिंदगी के इस पथ पर मुझे आपके सहयोग की जरूरत है...इस पत्रकारिता के उत्थान के लिए....इस भारत महान के लिए..दोस्त इस गुजारिश पर गौर कीजिये...

Monday, February 14, 2011

अल्हड़ता,अक्खड़ता की अनोखी अदा

मध्य प्रदेश का एक अदना सा जिला..नया नवेली सल्तनत..लेकिन अपने आपमें ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे अपनी समृद्धता और सम्पन्नता को बढाता है...अलीराजपुर का एक छोटा सा क़स्बा भाभरा...जिसकी सुन्दरता के बारे में जितना कहा जाये कम है...भाभरा के बारे में बता दे..ये वही क़स्बा है..जहाँ कभी न झुकने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने जन्म लिया था...अपने बचपन के १४ साल बिताये...बीच कसबे में दूसरे मकानों के बीच बनी एक छोटी सी कुटिया...जिसके बाहर आज़ाद के तराने लिखे गए हैं....मगर अफ़सोस कि चंद्रशेखर आज़ाद की इस नगरी का नाम बदलकर भाभरा से आज़ाद नगर नहीं किया गया...जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इसकी घोषणा भी कर चुके हैं...खैर..राजनैतिक मामला..लेकिन इसी कसबे का एक शख्स ऐसा दिखा जो आज़ाद के प्रति पूर्णतया समर्पित है....आज़ाद की कुटिया के ५ओ कदम आगे जाने पर एक दरजी की दुकान पड़ती है...उसका बोर्ड पढने पर पता चला..ये आज़ाद नगर है...केवल यही एक बंदा है जो अपनी दुकान के पते में आज़ाद नगर का ज़िक्र कर रहा है....यानि इस नगरी के नाम परिवर्तन के लिए मौन आन्दोलन चला रहा है....आगे जाकर जब यहाँ के लोगों से मिलने का मौका मिला...तो सब में आज़ाद प्रवृत्ति का समावेश पाया...यहाँ की आवो-हवा को जब अपनी साँसों में खिंचा तो खुद एक जोश और जूनून से लबरेज़ पाया..यहाँ का पानी इस आस से पिया कि आज़ाद की रगों में खून बनकर दौड़ने वाला यहाँ का पानी मुझे भी बेफिक्री में जीना सिखा दे...मुझमे भी वो अक्खडपन,अल्हड़ता आ जाये..जिसके दम पर आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहा...यदि आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहे..यदि उनमे स्वाधीनता का भाव आया तो मै इसका श्रेय उनको नहीं देता..बल्कि इसके लिए उनकी जन्मभूमि का ज्यादा योगदान रहा...यहाँ के हर शख्स को मैंने अजीब सी बेफिक्री,अक्खड़ता में जीते देखा...अगर आज़ाद में अपने आत्म सम्मान के प्रति भाव था...तो इसमें उनका स्वाभाव नहीं..बल्कि यहाँ की मिट्टी की सौंधी और स्वभिमानिता की खुशबू का असर था...जिसका अन्न आज़ाद की नस नस में दौड़ रहा था...बड़ा गौरवान्वित महसूस कर रहा था...इस परम पुनीत नगरी में आकर...मन ही मन इस पवित्र नगरी को प्रणाम किया...और आशा की..कि यहाँ का पानी भी मेरी रगों में आज़ाद प्रवृत्ति और फक्कडपन लाएगी...अल्हड़ता और अक्खड़ता जिससे देश सेवा का मार्ग प्रशस्त हो सके...और मरते दम तक आज़ाद रह सकूँ...साथ ही भीम और हिडिम्बा जिस स्थान पर मिले थे उस स्थान को देखने का मौका भी मिला...जब उस स्थान को देखा तो महाभारत की एक एक याद ताज़ी हो गई....बाते ढेर सारी हैं..बस अब भी बार बार आज़ाद कि नगरी को प्रणाम करने को मन करता है...भगवान मुझे भी आज़ाद प्रवृत्ति प्रदान करे...यही दुआ बार बार करता हूँ...
कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र(मा.रा.प.वि.वि.भोपाल)

Saturday, February 12, 2011

जहाँ दूल्हे पहनते है गुटखों की मालाएं

शादी में दुल्हे के गले में फूलों की माला नहीं..बल्कि राजश्री और विमल जैसे पान मसालों क़ी माला होती है...बड़ा अजीब लगा देखकर...एक तरफ तो लोग दूल्हे के जीवन की दूसरी पारी शुरू करने की शुभकामनाये देते है...तो दूसरी ओर उनके गले में मौत का सामान लटकाकर शगुन की रस्म अदायगी की जाती है...बड़ी विडंवना है....कैंसर जैसी भयावह बीमारियों को जन्म देने वाल्व पान मसालों को गले मे लटकाकर दूल्हे दुल्हन को विदा करने जाते है....ऐसे में अब दुल्हन के सुहाग के जीवित रहने की गारंटी कौन ले... की तस्वीर देखी तो पाया क़ी भाले उस घर में खाने को दो जून की रोटी न हो लेकिन हर घर में मोबाइल और पान मसालों के पाउच जरूर मिल जायेगे...मतलब खाने से ज्यादा जरूरत लोगों को मोबाइल क़ी...सूचना क्रांति की ऐसी बयार अन्यत्र कहीं नहीं देखी....ना पान मसालों के प्रति दीवानगी...

भारत गाँवों का देश कहा जाता है...किसानों को ग्राम देवता के नाम से नवाजा गया है.. भारत की आत्मा गाँवों में बसती है...एहसास तब हुआ जब आदिवासी इलाकों के गाँव-गाँव जाकर सच से रु ब रु हुआ...सवाल विकास का था..मुद्दा विकास कार्यों के क्रियान्वयन का था...सो रतलाम,झाबुआ,अलीराजपुर के ग्राम देवताओं से मिलने पहुच गए..स्वर्ग सी सुन्दरता की चादर ओढ़े गाँवों में...वहां कि खूबसूरती के क्या कहने...लेकिन एक बात मुझे अब तक समझ नहीं आई कि रतलाम के गाँवों के बच्चे गाड़ी के रुकते ही उलटे पैर भागना क्यों शुरू कर देते थे...काफी उधेड़बुन के बाद शायद सोच पाया हूँ..कि जब बचपन में बच्चा शैतानी करता है..तो मां कहती है बेटा बाबा पकड़ लेगा या आ जायेगा...और शायद वे बच्चे हम लोगों को बाबा का ही रूप मान लेते थे...खैर..डर भयानक होता है...गाँव के विकास की तस्वीर जब हम लोगों ने देखी तो लगा कि सरकार विकास की गंगा बहाने में लगी हुई है...कहीं पर तालाब निर्माण किया गया तो कहीं नादाँ फलोद्यान दिया गया...यानी किसानो के पलायन रोकने और उनके विकास करने को लेकर सरकार कटिबद्ध है.
मगर अफ़सोस भी हुआ कि यदि पूरा पैसा इस विकास में लग पाता तो शायद तस्वीर कुछ और होती...क्यों कि केवल बारिश कि फसल लेने वाले किसान अब साल में तीन फसल लेने लगे है...सामाजिक कार्यों में रूचि लेना भी शुरू कर दिया है...इसमें अधिलारियों का बहुत बढ़ा योगदान है...बिना आला अधिकारीयों कि पहल के कुछ भी संभव नहीं था...गाँव पहुंचकर जब लोगों का व्यवहार देखा तो समझ में आया..कि मेरे देश में मेहमानों क़ी कैसी आवभगत होती है...
मेरे देश में मेहमानों को भगवान कहा जाता है
वो यहीं का हो जाता है,जो कहीं से भी आता है
शायद यही वजह थी..क़ी मेरा भी मन उस आदिवासी इलाके में रमने लगा...वहां की संस्कृति..परम्पराओं से परिचित होने का मौका मिला...अद्भुत अनुभव रहा...शादी का माहौल आदिवासियों का देखा...उनके गाने और महिलाओं के शराब पीकर नाचने का अंदाज बहुत पसंद आया...चलते चलते आदिवासी लड़कियां लाल रंग क़ी चुनरी ओढ़े दिख जाती थी...पूंछने पर बताया गया..क़ी ये कुवांरी लड़कियों का संकेत है...वहां की औरतो की वेशभूषा देखी..तो एहसास हुआ क़ी हम लोग कपडे पहनना सिख गए..और अब कपडे काम भी कर दिए लेकिन वो महिलाये अभी तक पूरे कपडे पहनना नहीं सीखी....
एक गाँव में सरपंच के घर पर स्वागत ऐसे किया गया जैसे लड़की क़ी गोद भराई क़ी रस्म पूरी करने वाले आये हों...मक्के के भुट्टों से स्वागत किया गया..लाजवाब था...इतना प्यार और दुलार देखा तो समझ में आया क़ी हिंदुस्तान का दिल आजादी के ६४ साल बाद भी क्यों गाँव में बसता है...जबकि शहर में किसी को अपने पडोसी के बारे में भी खबर नहीं होती...गाँव का प्यार और दुलार हमेशा अविस्मरनीय रहेगा....ग्राम देवताओं को प्रणाम...

Tuesday, January 25, 2011

.....सीरत बदलनी चाहिए

गणतंत्र दिवस से बस एक दिन पूर्व राजधानी में गणतंत्र दिवस की स्कूल रैली जैसा माहौल दिखा..पीपुल्स समाचार की तरफ से आयोजित भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही एक मुहीम के तहत इस रैली का आयोजन किया गया...रैली बोर्ड ऑफिस चौराहे से शुरू हुई और बीजेपी कार्यालय के पास जाकर रुक गई...निश्तित रूप से एक सराहनीय कार्य...भ्रष्टाचार को मिटाने का...लेकिन एक प्रश्न भी मष्तिष्क में आता है...की इस रैली का क्या प्रायोजन...क्या हम कलम के दम पर इस मुहीम को नहीं छेड़ सकते थे...पीपुल्स समाचार ने कई दिनों तक इस मुहीम को कलम के द्वारा भी जिलाए रखा...लेकिन समापन के मौके पर...जहाँ कई सडको पर सुरक्षा व्यवस्था चौकस थी..तो कई सडको को गणतंत्र दिवस के कारण बंद भी किया गया था...ऐसे में युवाओं का एक लम्बा हुजूम राजधानी की सड़कों पर निकल रहा है....तो यातायात व्यवस्था चरमरानी थी...वैसा ही हुआ...अब हम और लोगों से अलग कैसे हुए...जब चौथा स्तम्भ भी समाज,प्रशासन के कार्यों में सहयोग देने की बजाय...परेशानी कड़ी कर दे तो निश्तित रूप से सोचना पड़ेगा...मेरा इरादा खबर देना या आलोचना करना नहीं है...लेकिन फिर भी एक कर्तव्यबोध के नाते फ़र्ज़ मेरा मुझे ऐसा लिखने को मजबूर कर रहा था...एक प्रशंसनीय प्रयास...मेरा इरादा था की 25 जनवरी की संध्या पर लिखू...कि सूरत बदलनी चाहिए...लेकिन फिर सोचा..शायद अब ये पंक्ति प्रासंगिक नहीं रही...अब सीरत बदलनी होगी...क्यों कि भ्रष्टचारिता के हमने कई आयामों को छुआ भी और देखा भी...बोफोर्स घोटाला,कैफीन बॉक्स घोटाला,चारा घोटाला,सुगनी देवी जमीं का घोटाला,ओलम्पिक खेलों में घोटाला...और फिर भी घोटालों कि कमी महसूस की गई..तो ए.राजा की जेब से घोटाले का जिन्न ही बाहर निकल आया...इतना बड़ा घोटाला था..कि एक मजदूर तो रकम सुनते ही बेहोश हो जाए...एक कर्मचारी इतनी रकम देखकर हार्ट अटैक का शिकार हो जाये...लम्बी लिस्ट है...सूरत तो बदली...फिल्मों की शूटिंग के शोट्स क़ी तरह ज्यों ही समय की रफ़्तार ने एक्शन बोला..एक नई सूरत...नए शोट्स के साथ...कट हुआ..एक्शन बोला दूसरी सूरत....लेकिन सभी की सीरत एक सी रही....भ्रष्टाचार में देश को पहला स्थान दिलाना है...और ये कोशिश आज तक जारी है...लोगों की अगर सीरत बदल जाए...कुछ चिंतन गरीबों..देश के लिए किया जाए तो कुछ सार्थक होगा...ऐसे प्रदर्शन...
लेकिन पता नहीं कब हमारा अंतर्मन जागेगा...हम कब पैसों की जगह नैतिक मूल्यों को तरजीह देंगे...ये किसी को नहीं मालूम...लेकिन करना होगा दोस्तों...आजादी का एक लम्बा अरसा बीत जाने के बाद भी अगर सूरत और सीरत नहीं बदल पाई..तो दोष किसका?हम सबका दोस्तों....हमें नैतिक मूल्यों क़ी दुहाई नहीं देनी है...इन्हें बचाना भी होगा....इसी आवाहन के साथ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ...

.....सीरत बदलनी चाहिए

गणतंत्र दिवस से बस एक दिन पूर्व राजधानी में गणतंत्र दिवस की स्कूल रैली जैसा माहौल दिखा..पीपुल्स समाचार की तरफ से आयोजित भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही एक मुहीम के तहत इस रैली का आयोजन किया गया...रैली बोर्ड ऑफिस चौराहे से शुरू हुई और बीजेपी कार्यालय के पास जाकर रुक गई...निश्तित रूप से एक सराहनीय कार्य...भ्रष्टाचार को मिटाने का...लेकिन एक प्रश्न भी मष्तिष्क में आता है...की इस रैली का क्या प्रायोजन...क्या हम कलम के दम पर इस मुहीम को नहीं छेड़ सकते थे...पीपुल्स समाचार ने कई दिनों तक इस मुहीम को कलम के द्वारा भी जिलाए रखा...लेकिन समापन के मौके पर...जहाँ कई सडको पर सुरक्षा व्यवस्था चौकस थी..तो कई सडको को गणतंत्र दिवस के कारण बंद भी किया गया था...ऐसे में युवाओं का एक लम्बा हुजूम राजधानी की सड़कों पर निकल रहा है....तो यातायात व्यवस्था चरमरानी थी...वैसा ही हुआ...अब हम और लोगों से अलग कैसे हुए...जब चौथा स्तम्भ भी समाज,प्रशासन के कार्यों में सहयोग देने की बजाय...परेशानी कड़ी कर दे तो निश्तित रूप से सोचना पड़ेगा...मेरा इरादा खबर देना या आलोचना करना नहीं है...लेकिन फिर भी एक कर्तव्यबोध के नाते फ़र्ज़ मेरा मुझे ऐसा लिखने को मजबूर कर रहा था...एक प्रशंसनीय प्रयास...मेरा इरादा था की 25 जनवरी की संध्या पर लिखू...कि सूरत बदलनी चाहिए...लेकिन फिर सोचा..शायद अब ये पंक्ति प्रासंगिक नहीं रही...अब सीरत बदलनी होगी...क्यों कि भ्रष्टचारिता के हमने कई आयामों को छुआ भी और देखा भी...बोफोर्स घोटाला,कैफीन बॉक्स घोटाला,चारा घोटाला,सुगनी देवी जमीं का घोटाला,ओलम्पिक खेलों में घोटाला...और फिर भी घोटालों कि कमी महसूस की गई..तो ए.राजा की जेब से घोटाले का जिन्न ही बाहर निकल आया...इतना बड़ा घोटाला था..कि एक मजदूर तो रकम सुनते ही बेहोश हो जाए...एक कर्मचारी इतनी रकम देखकर हार्ट अटैक का शिकार हो जाये...लम्बी लिस्ट है...सूरत तो बदली...फिल्मों की शूटिंग के शोट्स क़ी तरह ज्यों ही समय की रफ़्तार ने एक्शन बोला..एक नई सूरत...नए शोट्स के साथ...कट हुआ..एक्शन बोला दूसरी सूरत....लेकिन सभी की सीरत एक सी रही....भ्रष्टाचार में देश को पहला स्थान दिलाना है...और ये कोशिश आज तक जारी है...लोगों की अगर सीरत बदल जाए...कुछ चिंतन गरीबों..देश के लिए किया जाए तो कुछ सार्थक होगा...ऐसे प्रदर्शन...
लेकिन पता नहीं कब हमारा अंतर्मन जागेगा...हम कब पैसों की जगह नैतिक मूल्यों को तरजीह देंगे...ये किसी को नहीं मालूम...लेकिन करना होगा दोस्तों...आजादी का एक लम्बा अरसा बीत जाने के बाद भी अगर सूरत और सीरत नहीं बदल पाई..तो दोष किसका?हम सबका दोस्तों....हमें नैतिक मूल्यों क़ी दुहाई नहीं देनी है...इन्हें बचाना भी होगा....इसी आवाहन के साथ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ...

Saturday, January 22, 2011

.ब्रेकिंग न्यूज़ की बदलती शक्ल..

आजकल बड़ी ही ऊहापोह की स्थिति मै हूँ...जब दिन भर घूमकर कमरे पर जाता हूँ...तो मेरा एक जूनिअर...खाई वो जूनियर काम भाई ज्यादा है...साथ रहते रहते आत्मीयता और पारिवारिक माहौल बन गया है.....मेरा जूनियर अक्सर भोपाल में छोटे छोटे चैनलों की की आई बाढ़ के बारे में पूंछता है...क्या होगा कृष्णा भैया भविष्य का...कैसे कटेगा पूरा जीवन...छोटा कहीं हताश न हो...इसलिए हमेशा उसे समझाइश देता रहता हूँ...आशीष संघर्ष करो...मजा आएगा...जब सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी...पर दरअसल बात ये है...कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया की पत्रकारिता को देखकर मैं भी परेशान हो जाता हूँ...कभी दिन भर हंसी के ठहाकों का चलना...तो कभी पुराने रेकॉर्डेड कार्यक्रम चलाकर दर्शकों को बेवकूफ बनाना...या बाईट के नाम पर कहीं पर भी कट लगाकर किसी को फ़साना...अजीब लगता है सब...अब एक चैनल जो खबर चलाता है कि जस्टिस के यहाँ फटा दूध...प्रमुख सचिव को काटा कौवे ने...बस इस तरह की पत्रकारिता में कैसे कटेगी जिंदगी...
एक बानगी देखिये जरा...

जस्टिस जैन के घर फटा दूध..

ईटीवी, राजस्थान पर आजकल कुछ इसी तरह के न्यूज फ्लैश किए जाते हैं. पट्टी पर चलने वाली खबरों का स्तर बेहद गिरा है. कुछ भी चला दिया जाता है.

किसी के घर दूध फटा तो किसी ने चाय पी.... जैसी स्थितियां भी अब न्यूज है. संभव है रीजनल न्यूज चैनलों के लिए ये खबर हो. पर आप क्या मानते हैं. इस तस्वीर को ध्यान से देखिए और बताइए कि आखिर जस्टिस जैन के घर का दूध किसने फाड़ा होगा? क्या किसी आतंकवादी ने? या सरकारी साजिश है? या ग्वाले ने? आखिर किसने फाड़ा होगा पूर्व जस्टिस एनके जैन के घर का दूध....???:)

ब्रेकिंग न्यूज... मुख्य सचिव को कौवे ने काटा..(...bhadas4media से साभार)


ज़रा, एक और बानगी देखिये. इसे ETV, Rajasthan की पट्टी कहते हैं... "मुख्य सचिव एस अहमद को कोवे ने काटा".

अब ऐसे में जब चैनल मक्खनबाजी में ही जुटा है...तो फिर आम जानता की बात कौन करेगा...भोपाल का भी एक चैनल है...जिसमे साफ़ तौर पर निर्देश दिया गया है..कि मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ नहीं बोलना है...ऐसी ख़बरें चलाना साफ़ तौर पर प्रतिबंधित की गई है....पता नहीं कहाँ ले जाएगी हमें ये बे सर पैर की पत्रकारिता.....चिंतन और मनन...मै आप लोगों पर छोड़ता हूँ...

Tuesday, January 18, 2011

अबला नहीं भीष्मा कहिये.

नशाखोरी समाज में इतनी भीषण तरीके से अपनी जड़ें फैला चुका है...कि बरगद कि हर एक टहनी से निकलने वाली जड़ों कि संज्ञा इसको दें तो शायद काम होगी...सवाल समाज के लोगों का है...आपका है...हम सबका है....आखिर इस मौज भरी जिन्दगी में हमें किस बात का तनाव...जब रिश्ते नाते टूट रहे है...उनमे बिखराव हो रहा है..भाई भाई को कट रहा है...बेटा मां-बाप की हत्या कर रहा है....खबरिया चैनल मानव मूल्यों की हत्या करने में लगे है....किसी को किसी के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है...तो तनाव क्यों...हम भी बेफिक्री में क्यों नहीं जीते...पर नहीं जी सकते है दोस्त....इन रगों में आवो हवा आज भी उस गाँव की मौजूद है...उस गाँव की नदी कुओं का पानी रक्त बनकर इस जिस्म में दौड़ रहा है....जो बिसलरी की बोतल से कहीं ज्यादा पवित्र और शुद्ध है....यदि ऐसा नहीं तो गंदगी बजबजायी गंगा को हम आज भी मैया क्यों कहते है...किसी भी सोच की शुरुवात गाँव से ही होती है...ऐसी ही शुरुवात नशाखोरी मुक्त समाज की हुई है सिवनी जिले के एक गाँव से.....जहाँ की औरतों ने निश्चय किया है की यदि उनके पतियों ने शराब पी तो वे उससे तलाक मांग लेगी...यही नहीं यदि गाँव में कोई शराब बेंचता या पीता पकड़ा जाता है तो उसे डेढ़ हजार रूपए का जुरमाना ग्राम पंचायत को देना होगा...इसके अलावा शराब पीने वाले की सूचना देने वाले को ग्राम पंचायत एक हजार रूपए का इनाम देगी...जिला मुख्यालय से करीब ३५ किमी.दूर आदिवासी बाहुल्य ढुतेरा गाँव की महिलाओं ने गाँव को नशामुक्त बनाने का संकल्प किया है...एक हजार चार सौ दस लोगो की आबादी वाले इस गाँव में आज से आठ साल पहले गाँव के युवकों की शराब पीने से मौत हो गई थी...मौत के बाद गाँव के लोगों ने बैठकर शराब न पीने और बेंचने का संकल्प लिया...तब पुरुषों ने कमान संभाली..अब महिलाये इसकी केंदीय भूमिका में है....इस नेक काम में कलाबाई ने सबसे पहले अपने शराबी पति से रिश्ता तोड़ दिया है......बड़ा ही दिलेरी का काम किया है कलावती ने....हर किसी में शायद कलावती जैसी हिम्मत नहीं होती...पर शायद जब संकल्प लिया है...तो रिश्ते नाते भी दूर होगे...शायद महाभारत के पात्र अम्बा को भी तो भीष्मा कह सकते है....मुझे महाभारत की एक पात्र अम्बा का नाम याद आ रहा है....जब देवव्रत भीष्म ने.उनका हरण किया....तो वे शादी के लिए तैयार नहीं थी...हस्तिनापुर से उनकी ससम्मान विदाई कर दी गई...लेकिन शाल्वराज ने उनको अपनी अर्धांगिनी बनाने से मन कर दिया....तब वो भीष्म से शादी के लिए तैयार तो हुई..पर भीष्म ने शादी न करने की प्रतिज्ञा की थी...अब सवाल था कैसे अम्बा का जीवन कटेगा...तब अम्बा ने जो प्राण किया था की भीष्म का संहार मै करुगी...और तपस्या करने लगी...और तभी कठिन साधना के कारण उनका नाम भीष्मा पड़ा.... इस गाँव की सभी भीष्माओं को मेरा सलाम

Saturday, January 8, 2011

आज भी याद है...

चार अक्षर पढने को मै आया शहर
गाँव हरपल मुझे याद आता रहा
साथ बैठे दोस्तों की वो अठखेलियाँ
वो बचपन की कृत्रिम बोलियाँ
वो बैठकर मंदिर पर बैठकर की गपवाजी कभी
लोट पोट हो जाते थे सुन कर सभी
वो मां का दुलार
वो पापा की लताड़
आज भी याद है...
वो खेतो पर जाकर मटर की फली
वो गाँव में पारो के घर की गली
चलने लगा जब घर से शहर के लिए
किसी ने मांगी दुआ,तो कोई बोला
चलो एक बला तो टली
पाकर शहर में दोस्तों का प्यार
वो मां का स्नेह वो दुलार
वो पिता की लताड़
सब कुछ मिला
मां देवकी और वसुदेव को छोड़ आया जो गाँव में
नन्द बाबा और मैया यशोदा का भी प्यार पाया
खुसनसीब हूँ कि इतना कृष्ण तो बन गया
बस अब एक कंस कि दरकार है...
सही मायने मै कृष्ण बन सकूँ.
बस यही एक चाह है....

Monday, January 3, 2011

नई सदी की ग़मगीन शाम..

नई सदी का नया सवेरा नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर... लेकिन पत्रकारिता विश्वविध्यालय का एक योद्धा दौड़ने के पहले ही कदम ठिठका कर खड़ा हो गया....दोस्तों ने कहा..तुझे चलना होगा....तुझे पत्रकारिता जगत को नया आयाम देना है...तुझे बोलना होगा...उठाना होगा...मौत से जीतना होगा....लड़ना है जमाने से....देखो पूरा विश्वविद्यालय बुला रहा है तुम्हे...उठो मनेन्द्र....चलो....परिक्षये ख़त्म हुई....घर पर सब इंतजार कर रहे है.......जाने नहीं देंगे तुझे...जाने तुझे देंगे नहीं....मां ने ख़त में क्या लिखा था...जिए तू जुग-जुग ये कहा था....चार पल भी जी न पाया तू........लेकिन वो ऐसे नीद के आगोश में सोया की फिर उठ नहीं पाया......

अभी कल की ही तो बात है,जब मैंने नई सदी का नया सवेरा की मंगल कामना की थी....मगर अफ़सोस की पत्रकारिता विश्वविद्यालय से समय ने एक ऐसा योद्धा छीना....जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता....

भोपाल के रेडक्रास अस्‍पताल में इलाज के दौरान पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय के एक होनहार छात्र हम सबको छोड़कर चला गया. वह विज्ञान पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. छात्र के सहपाठियों ने इलाज करने वाले डाक्‍टर पर गलत इंजेक्शन लगाने का आरोप लगाया है. डाक्‍टर उक्‍त छात्र की मौत हार्ट अटैक के चलते होने की आशंका जता रहे है. पुलिस ने छात्र के शव को पोस्‍टमार्टम के लिए हमीदिया अस्‍पताल भेज दिया है.

रचना नगर में रहने वाले छात्र मनेंद्र पांडेय (28 वर्ष) को अचानक सीने में दर्द हुआ. जिसके बाद उसे इलाज के लिए रेडक्रास अस्‍पताल में भर्ती कराया गया. दर्द तेज होने पर वहां मौजूद डाक्‍टर अजय सिंह ने उसे इंजेक्शन लगाया. इसके करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद मनेंद्र की मौत हो गई. मनेंद्र को इसके पहले भी सीने में दर्द हुआ था. जिसे कम करने के लिए उसने दर्द निवारक दवाएं ली थी.

पता नहीं इस नई सदी के आगाज में हम लोगो से कहाँ गलती हुई कि हमारा एक मित्र ऐसे रूठा....कि पूरा विश्वविद्यालय उसके कदमो में बैठा है...पर वह अड़ियल है....किसी कि बात नहीं मान रहा है.....वो हमसे दूर जाने की ठान चुका है....देखो कैसे हाथ छुड़ा के भाग रहा है.....कोई रोको उसे...कोई तो मनाओ.....कोई तो होगा जिसकी बात माने.....एकलव्य जी आप ही समझाए......पी.पी.सर आप ही आदेश दो इसे...आपकी बात नहीं काटेगा....

लेकिन शायद पी.पी.सर में भी अब मनेन्द्र को आदेश देने की ताकत नहीं बची....सबके गले रुंधे है....सबको मनेन्द्र से विछोह का दुःख है.....लौट आओ मनेन्द्र ...जुबान पर यही लब्ज है.....लेकिन वो जा रहा है...हम सबको अकेला छोड़कर.....

लौट आओ मनेन्द्र....हम चाय पीने चलेगे.....

कृष्ण कुमार द्विवेदी

छात्र(मा.रा.प.विवि,भोपाल)

Sunday, January 2, 2011

नई सदी का नया सवेरा

नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर...
पुराना साल,हर साल की तरह कुछ खट्टी मीठी यादें छोड़ गया...कुछ अनसुलझे सवाल,गुत्थियाँ भी...जिनको हम आगे आने वाले समय में विचार कर सकें,और सही डगर पर चल सकें.....इस साल की शुरुआत के साथ एक ख़ुशी और...की इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक की शुरुवात भी हो गई.....जैसा पहला दशक निकला समाज में कुछ विसंगतियों के साथ,कुछ नए अनुभवों के साथ गुजरा....इस दशक की एक अनसुलझी गुत्थी आरुशी हत्याकांड...जिसमे सी.बी.आई. ने भी हाथ खड़े कर दिए...इसे अपराधी की शातिरता कहें या सी.बी.आई. की नाकामी...खैर...एक उम्मीद कि ये नया दशक भी कुछ उसी तरह या उससे बेहतर साबित हो.....
मुझे याद है कि जिस समय इक्कीसवीं सदी के पहले दशक कि शुरुआत होने वाली थी,उस समय मै कक्षा सात में पढने वाला गाँव का एक भोला सा आम लड़का था...जिसकी न एक अलग सोच थी...न विचार...हाँ...नए साल से एक उम्मीद जरूर थी...कि शायद दुनिया ख़त्म नहीं होगी...क्यों कि उस समय भी ये अफवाह जोरों से चल रही थी कि १ जनवरी २००० को दुनिया ख़त्म हो जायेगी....लेकिन तर्क किसी के पास नहीं था......लेकिन समय गया...गुजरा ...दुनिया आज भी कायम है....समय आज भी अपनी गति से चलायमान है....लेकिन अब २०१२ का भी दर लोगों के ज़ेहन में है.....लेकिन हम भारतीय भी आशावादी है....हम जीतेगे....क्यों कि हम सबमे परिस्थितियों से जूझने का जज्बा है...एक दशक के बाद आज मै एक ऐसे समाज का हिस्सा बन गया हूँ...जिसे अपने अलावा समाज के हर वर्ग के बारे विचार करना पड़ता है...अपने आप में एक सुखद एहसास...हर हिन्दुस्तानी की तरह मुझे भी नए साल से ढेरों उम्मीदें है....
१-क्रिकेट का वर्ल्ड कप इस बार भारत में आएगा.
२-भारत विश्व की एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा.
३-संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता मिल जायेगी.
४-युवाशक्ति अपने होने का एहसास राजनीति में जरूर कराएगी.
५-साहित्य लेखन बढेगा.
६-पत्रकारिता के वेद व्यासों,और नारदों को सद्बुद्धि आएगी.
७-हर गरीब को रोजगार मिलेगा
8-हर बच्चे को पढने का अधिकार मिलेगा.
9-चिकित्सा के क्षेत्र में विकास होगा.
१०-हम आर्थिक रूप से भी मजबूत होंगे.
इन्ही अपेक्षाओं और उम्मीदों के साथ हम होंगे कामयाब की भावना के साथ सभी लोगों को
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं'