Thursday, February 17, 2011

हम उपभोक्ता नहीं निर्माता हैं...

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना,गिरकर चड़ना न अखरता है
.......
हरिवंशराय बच्चन की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ गई...
राजधानी भोपाल के पास एक ग्राम पंचायत कुकरीपुरा का गाँव त्रिवेणी...जिसमे लोगों की मदद और सरकारी योजना के चलते बिजली से जगमग हो गया...एक ओर जहाँ राज्य सरकार केंद्र सरकार पर कोयला न देने का आरोप लगा रही है...और बिजली की कमी का रोना रो रही है....तो दूसरी ओर ग्रामीणों का सकारात्मक प्रयास से गाँव बिजली से रोशन हो गया...वहीँ त्रिवेणी के आसपास के गाँव अँधेरे में डूबे रहते है....करीब छह सौ की आबादी वाला ये गाँव जिसमे आधे से ज्यादा घरों के शौचालयों के टैंक सीवर लाइन से जोड़े गए...और फिर केंद्र सरकार की ग्रामीण स्वच्छता योजना के तहत इस मल से बायो गैस के ज़रिये बिजली उत्पादन किया जा रहा है...करीब ५ मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है इस गाँव में...गाँव के लोग अब बिजली के लिए अँधेरे में एक दूसरे का मुंह नहीं तकते हैं...बल्कि इस बिजली से गलियों में ट्यूब लाईट जलाई जाती है...किसी की शादी विवाह में भी रोशनी के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है...सामुदायिक भवन भी रोशन हो रहा है...गाँव वालों का कहना है कि अभी जब पूरे घरों के सीवर टैंक इससे जुड़ जायेगे तो उत्पादन और बढ़ जायेगा..अब ग्रामीण न केवल टेलीवीजन चलाते हैं बल्कि एफ.एम. का आनंद भी लेते है....खैर...मेहनत तो रंग लाती ही है...बस जरूरी होता है ज़ज्बा..जोश..जूनून...और काम के प्रति लगन...
आप मेरी तकदीर क्या लिखेगें दादू?वो मेरी तकदीर है..जिसका नाम है विधाता....संजय दत्त का ये डायलोग विधाता फिल्म का याद आ गया....इस गाँव को देख कर क्या कहू...समझ नहीं आ रहा है...इतना खुश हूँ कि गाँव में रहने वाले दीन हीन लोग भी अब अपनी तरक्की के लिए आगे आ रहे हैं...और अपने विकास की इबारत भी खुद ही लिख रहे हैं....बस यही ज़ज्बा सब में आ जाये तो हिंदुस्तान को विकसित राष्ट्र बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा....

1 comment:

JAGDISH BALI said...

Great post. प्रेरणादायक !