Saturday, October 30, 2010

रणभूमि बने गाँव

भारत देश गांवों का देश कहा जाता है...क्यों कि यहाँ कि ७०% जनता गाँव में निवास करती है...भोले भाले लोग,सुबह सुबह गाय भैसों को दुहने जाते ग्रामीण,पनघट पर पानी भरने जाती यहाँ की औरतें..हाँ जमींदारो के यहाँ और बात है..कोई नौकर लगा हो या घर में ही कुआं हो,बात अलग होती है...लेकिन ज्यादातर गाँवों कि पहचान यही होती है...खेत पर जाते किसान ...यहाँ के मौसम भी उतने ही सुहाने लगते है जितने यहाँ के लोग...कभी सर्दी,कभी गर्मी,बारिश और पतझड़......बारिश के जाते ही हिन्दुस्तान की फिजाओं में सर्दीली हवाओं ने दस्तक दे दी है.....एक बयार ठंडी हवाओ की चलना शुरू हो गई...खैर मौसम है तो बयार भी चलेगी..और ठंडक का एहसास भी होगा....२६ जनवरी १९५० को देश का गणतंत्र लागू किया गया....गांधी ने राम राज्य की परिकल्पना दिल में संजोई थी....लेकिन उन्ही के टाइटल का प्रयोग करने वाली एक तानाशाही महिला ने उनकी इस सपने की धज्जियाँ उड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी.....आपातकाल के समय से ही राजनीती में गंदगी का दौर शुरू हुआ...खैर बात मुद्दे की...देश में चुनावों की बयार भी चल रही है...लेकिन इसका एहसास गर्म है.......उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो चुके है...तो बिहार में विधानसभा चुनाव अपने पूरे चरम पर है.....बात पंचायत चुनाव की....चुनाव हुए....इन चुनावों में कई रिश्ते टूटे..कई जातीय समीकरण बने...दबंगई देखने को मिली....तो कहीं से हत्या की खबरे भी आई.....और कहीं चुनाव की आचार संहिता के नाम पर पुलिस ने लोगों से अभद्रता की,और मां का अपमान किया....लोकतंत्र है...स्वतंत्रता है.....पंचायत चुनावों में कहीं भाई भाई ही एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लादे,तो कहीं बाप के खिलाफ बेटा....महिलाए भी पीछे नहीं थी...कूद पड़ी समर में और पति के खिलाफ ही ताल ठोंक दी.......लेकिन नतीजे भी सामने है.....जीत एक की ही होती है......पहले कहा जाता था कि जीत अर्जुन की ही होती है लेकिन अब जीत तिकड़मी,दबंगों और पहलवानों की होती है.....ऐसा नहीं है कि नतीजे आने के बाद चुनाव समाप्त हो गए....मेरे लिहाज से चुनाव जंग अब तो शुरू हुई है....जो पूरे पांच साल अगले पंचायत चुनाव तक चलेगी.....कहीं प्रधान अपने विरोधियों से बदला लेगा,तो कहीं प्रधान को ही मौत के घाट उतारा जाएगा.....आम जनता की भावनाओं की किसी को क़द्र नहीं...कि उसने किसे चुना,और क्यों....फिर होंगे उपचुनाव.....और जनता वोट देती रहेगी.....ठप्पा लगाती रहेगी.....जितना वर्णन गाँव के बारे में किया गया...शायद अब वो तस्वीर बदलने लगी है....या बदल चुकी है....गाँव के लोग सीधे नहीं रहे...खूनखराबा और सत्ता की मलाई चखने कई ललक उनमे भी आ गई है....और इस मलाई को चखने के लिए ओ किसी भी हद तक जाने को तैयार है.....खैर देखते है पांच साल का पंचायत चुनाव का अखाडा कितनो की बलि लेता है...कितने घर बर्बाद करता है.....आगे के पांच सालों में ही देखने को मिलेगा....तो देखिये गाँवों का महासंग्राम....
कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र (मा.रा.प.विवि,भोपाल )

Monday, October 25, 2010

अब पत्रकार नहीं बनूगा...

एक वक़्त जब हम पर चढ़ा था बुखार,बनूगा पत्रकार
जन आशीष की चाह थी,चाह थी तो राह थी
एक दिन हश्र देखा,जब कलम की ताक़त का
हुआ अहसास वक़्त की नजाकत का
देश के बड़े पत्रकार और यूपी की माया
कलम को पुलिस के आगे लाचार पाया
पुलिस को शांति भंग की थी आशंका
डर था कहीं हनुमान जला न दे लंका
बस पत्रकार की मां को बिठा दिया थाने में
(करतूत उनकी थी)जो बिकते है रुपये आठ आने में
पत्रकार बेटे ने दिया घर की इज्ज़त का हवाल
पुलिस ने भी किये उससे सवाल दर सवाल
बेटे ने जब पुलिस को कानून का पाठ पढाया
लेकिन कानून भी सत्ता के आगे मजबूर नज़र आया
१८ घंटे बाद बमुश्किल,बेटा मां को आज़ाद करा पाया
धन्य है प्रशासन,धन्य है माया की माया
मां की आँखों का हर आंसू एक कहानी था
जेल में बीता हर पल एक लम्बी जिंदगानी था
देश की शसक्त महिलाए भी बेजुबान हो गई
या फिर माया बदगुमान हो गई
मै देखकर ये सब परेशां हो गया
बक बक करने वाला युवा बेजुबान हो गया
इस पूरी घटना में प्रशासन की तानाशाही थी
मां की आँखों में हर पल,बस सत्ता की तवाही थी
-कृष्ण कुमार द्विवेदी