Tuesday, May 5, 2009

आईपीएल के जलवे



बंद आंखों से आस्था का चुनावी महापर्व अपने आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। न जाने वर्ष 2009 में इस पर्व ने लोकतंत्र के कितने रंग दिखाए हैं। इन रंगों के छींटे केवल भारतीय नागरिकों पर ही नहीं ब्लकि विश्व भर के दुसरे देषों पर भी पड़े हैं। भारत एक विकासशील देशों में से एक है और विकास के नित नए आयाम भी पेश कर रहा है। लेकिन पालिटिक्स में अभी भी बौद्धिक विकास की जरूरत है। पहले तो नोटों के बंडल उछलाकर शर्मसार किया और फिर अब आईपीएल यानि इंडियन पाॅलिटिकल लीग जूते और चप्पलों की वजह से सूर्खियों में रहा। यूं कहें कि आज जनता ने अपने अभिव्यक्ति का माध्यम बदलकर जूते और चप्पल कर लिए हैं। संसद और विधानसभा में चप्पल और जूते का रिवाज तो है ही किंतु अब तो खुलेआम इसे भी लोकप्रियता मिल रही है।


लेकिन ये बेकसूर जनता ने ये कभी नहीं सोचा कि गिद्ध दृष्टि जमाए हुए इलेक्ट्राॅनिक मीडिया पल भर में सारी घटनाएं आॅन एयर कर देंगे। इनका क्या है भई। कुछ तो चटपटा होना चाहिए। ऐसा इसीलिए क्योंकि ये सारी घटनाएं विदेशी नागरिक भी देख रहे होते हैं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देष के बाहर भारत की छवि कितनी धूमिल हो सकती है। खैर इन बातों को छोड़िए। अब मंच टूटने के साथ-साथ जुबान भी बेलगाम हो गए हैं। बिना सोचे समझे कुछ भी कह गुजरते हैं नेता। कोई किसी पर बुलडोजर चला देने की बात कर रहा है तो कोई किसी को जादू की झप्पी के साथ पप्पी देने की बात कर रहा है। इसलिए राजनीति को मजाक न समझें उसमें बौद्धिक्ता लाएं क्योंकि इत्तेफ़ाक से वो देश को चलाने में सहयोग कर रहें हैं।


दुःख की बात तो यह है कि समाज जिसको अपराधी मानता है आज उन्हीं गंुडे और मवालियों को लोकतंत्र का फायदा मिल जाता है। वर्तमान के परिदृष्य को देखते हुए लगता है कि क्या वाकई में आम जनता का वोट कीमती है या महज एक औपचारिकता।


आशा करता हूं कि 16 मई को सही निर्णय आए। अभिषेक राय

No comments: