Friday, May 1, 2009

जिम्मेदार कौन?

तारीख 26 अप्रैल और दिन था रविवार का। मैं अपने घर अपने गांव जा रहा था। सफर काफी लंबा था। इस नाते शरीर भी काफी थका हुआ था और मन भी। इसी पषोपेष में था कि कब अपने घर को पहुंचूंगा। मैं सीट संख्या 16 पर बैठा था कि अचानक मेरी नजर सीट संख्या 3 पर पड़ी जिसपर एक अंग्रेज बैठा था। एक समय मुझे लगा कि वो मुझसे भी ज्यादा बेबस और लाचार होगा। चूंकि उसे हमारी भाषा तो आती ही नहीं। अभिव्यक्ति ऐसे में किसी व्यक्ति की जान होती है। और जब उसकी अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाएगा तो वह अपने आपका दुर्बल महसूस करेगा। दूसरे ही पल में मैने देखा कि वही अंग्रेज अपने ठीक विपरीत शैय्या पर बैठे एक गरीब और उसके बेटे की तस्वीर खींच रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो वह गरीब का मजाक उड़ा रहा हो। हो सकता है कि मैं मुगालते में हुंगा। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर हमारे देष में कोई विदेषी पर्यटक आते हैं तो यहां कि गरीबी ही क्योें यहंा कि खुबसूरती को क्यों नहीं निहारते। हमारा देष संस्कृति का देष है। स्लमडाॅग मिलेनियर भी इसका एक जीता जागता उदाहरण है। यहंा तो फिल्म की टाइटल ही मालूम हो जा रहा है। आखिरकार इसके जिम्मेदार कौन हैं?

चुनावी महापर्व में तो दीनदयाल की तरह नेता वोट की भीख मांगने आ जाते हैं। अरे जिन नेताओं का गांव की धुल मिट्टी से कभी वास्ता नहीं है और हमेषा वातानुकूलित घरों में रहने वाले भी सिर्फ वोट बैंक के लिए गांव की भोलीभाली जनता के साथ कदमताल मिलाने लगे हैं। अगर ये नेता एक अच्छा भारत चाहते, तो ये कभी एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करते।
अभिषेक राय

No comments: