- हृदेश अग्रवाल
अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग
कोई प्रेम का पुजारी, कोई प्रेम के ख़िलाफ़
मै बचपन से ही विचारक प्रवृत्ति का रहा हूँ...लेकिन अभी तक कोई माध्यम नही मिला जिससे कि दिल कि आवाज़ को लोगों तक पंहुचा सकूँ !लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के बाद विचारो को अभिव्यक्त करने का जज्बा भड़क उठा और लोगों से जुड़ने का अच्छा माध्यम लगा ब्लॉग और बना लिया विचारो को लिखने का आशियाना...
अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग
कोई प्रेम का पुजारी, कोई प्रेम के ख़िलाफ़