Tuesday, January 25, 2011

.....सीरत बदलनी चाहिए

गणतंत्र दिवस से बस एक दिन पूर्व राजधानी में गणतंत्र दिवस की स्कूल रैली जैसा माहौल दिखा..पीपुल्स समाचार की तरफ से आयोजित भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही एक मुहीम के तहत इस रैली का आयोजन किया गया...रैली बोर्ड ऑफिस चौराहे से शुरू हुई और बीजेपी कार्यालय के पास जाकर रुक गई...निश्तित रूप से एक सराहनीय कार्य...भ्रष्टाचार को मिटाने का...लेकिन एक प्रश्न भी मष्तिष्क में आता है...की इस रैली का क्या प्रायोजन...क्या हम कलम के दम पर इस मुहीम को नहीं छेड़ सकते थे...पीपुल्स समाचार ने कई दिनों तक इस मुहीम को कलम के द्वारा भी जिलाए रखा...लेकिन समापन के मौके पर...जहाँ कई सडको पर सुरक्षा व्यवस्था चौकस थी..तो कई सडको को गणतंत्र दिवस के कारण बंद भी किया गया था...ऐसे में युवाओं का एक लम्बा हुजूम राजधानी की सड़कों पर निकल रहा है....तो यातायात व्यवस्था चरमरानी थी...वैसा ही हुआ...अब हम और लोगों से अलग कैसे हुए...जब चौथा स्तम्भ भी समाज,प्रशासन के कार्यों में सहयोग देने की बजाय...परेशानी कड़ी कर दे तो निश्तित रूप से सोचना पड़ेगा...मेरा इरादा खबर देना या आलोचना करना नहीं है...लेकिन फिर भी एक कर्तव्यबोध के नाते फ़र्ज़ मेरा मुझे ऐसा लिखने को मजबूर कर रहा था...एक प्रशंसनीय प्रयास...मेरा इरादा था की 25 जनवरी की संध्या पर लिखू...कि सूरत बदलनी चाहिए...लेकिन फिर सोचा..शायद अब ये पंक्ति प्रासंगिक नहीं रही...अब सीरत बदलनी होगी...क्यों कि भ्रष्टचारिता के हमने कई आयामों को छुआ भी और देखा भी...बोफोर्स घोटाला,कैफीन बॉक्स घोटाला,चारा घोटाला,सुगनी देवी जमीं का घोटाला,ओलम्पिक खेलों में घोटाला...और फिर भी घोटालों कि कमी महसूस की गई..तो ए.राजा की जेब से घोटाले का जिन्न ही बाहर निकल आया...इतना बड़ा घोटाला था..कि एक मजदूर तो रकम सुनते ही बेहोश हो जाए...एक कर्मचारी इतनी रकम देखकर हार्ट अटैक का शिकार हो जाये...लम्बी लिस्ट है...सूरत तो बदली...फिल्मों की शूटिंग के शोट्स क़ी तरह ज्यों ही समय की रफ़्तार ने एक्शन बोला..एक नई सूरत...नए शोट्स के साथ...कट हुआ..एक्शन बोला दूसरी सूरत....लेकिन सभी की सीरत एक सी रही....भ्रष्टाचार में देश को पहला स्थान दिलाना है...और ये कोशिश आज तक जारी है...लोगों की अगर सीरत बदल जाए...कुछ चिंतन गरीबों..देश के लिए किया जाए तो कुछ सार्थक होगा...ऐसे प्रदर्शन...
लेकिन पता नहीं कब हमारा अंतर्मन जागेगा...हम कब पैसों की जगह नैतिक मूल्यों को तरजीह देंगे...ये किसी को नहीं मालूम...लेकिन करना होगा दोस्तों...आजादी का एक लम्बा अरसा बीत जाने के बाद भी अगर सूरत और सीरत नहीं बदल पाई..तो दोष किसका?हम सबका दोस्तों....हमें नैतिक मूल्यों क़ी दुहाई नहीं देनी है...इन्हें बचाना भी होगा....इसी आवाहन के साथ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ...

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