Sunday, February 22, 2009

एक दृश्य

हृदेश अग्रवाल
धूप के खूबसूरत टुकड़े पिघलने के लिए
कोई भी जगह हो सकती है
उसके तन पर एक जगह है
जहाँ रखे जा सकते हैं ओंठ
जहाँ रखे जा सकते हैं कुछ लफ्ज
एक सुंदर तस्वीर की तरह
सूरज डूब रहा है-
गहरे सुनहरे हो रहे हैं मन के रंग
किरणें रंग रही हैं हर

तस्वीर में एक लड़की बैठी है
अकेली निरंतर किसी तेज सफर में
शांति और गति का संगम है
उसका चेहरा दुनिया का अकेला सूर्यमुखी है

विशाल पलकें फूल खिलने की तरह उठती हैं
जीवन के सूर्योदय जैसी गतिविधियाँ
उसके ओंठ धरती के रसों को सम्हाले
उसकी लालिमा जैसे शताब्दियों के सूर्योदय
मेरी धरती का दृश्य
और मैं चल रहा हूँ।
साभार : रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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