Thursday, October 16, 2008

कब तक...?

कब तक?भारत देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर दिल में एक टीस उठी,जाग उठीएक कसक और उसी कसक को कलम से कागज़ पर उतार दिया .आशा है जरूर पसंद आएगी!एक रात को माँ का फोन आया कि बेटा में तुझसे मिलने कल आ रही हु !माँ कोलेने स्टेशन सुबह तडके ही पहुच गया,गाड़ी लेट थी सो गाड़ी के इंतजार मेंचाय पिने लगा !तभी भयावह सूरत,डरावनी शक्ल वाली एक औरत दिखाई दी,जिसकेबाल बिखरे हुए थे, माथे से लेकर पैर तक खून से सनी हुई थी, बदहवास सी वहऔरत छट पटा रही थी!उसके पैरों में पायलों कि जगह मोटी-२ बेडियाँ थी, हाथजल रहे थे, कपडे ऐसे कि शर्म भी शर्मा जाये,लेकिन चेहरे पर अलौकिक तेजथा,माथे की बिंदी उसके गाल पर चिपक गयी थी,वह रोना चाहती थी लेकिन आँखोंसे आंसू नहीं निकल रहे थे!वह अपने प्राण बचाने को चिल्ला रही थी, विलखरही थी,अपनी लाज बचाने को वह दौड़ती हुई चली आ रही थी!पत्रकार होने के नाते मैंने पूछ लिया आपकी दशा किसने की? मैंने भी बड़ाबेकार प्रश्न पूछा था जिसको अपनी जान के लाले पड़े हो और उससे उसकी कहानीपूछो, उसको सांत्वना देना और रक्षा करना तो दूर,उससे सवालो की झडी लगादी!इसमें मेरा कसूर नहीं था ,यह कसूर था नयी पत्रकारिता का जिसने TRP केफेर में उसकी पीडा, दर्द को भुला दिया जाता है और प्रश्नों की क़तर लगादी जाती है!उसने बताया कि जमीन के विवाद में पड़ोसियों से झगडा हो गया है,रिश्तेनातेदार तो दूर मेरे बेटों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है,बड़ा बेटा तोपड़ोसियों से मिल गया है और उसीने मेरी ऐसी हालत कराई हहै! दो छोटे बेटेबैठकर मजा ले रहे है,गाड़ियों से घूम रहे है,और अपनी शान-ओ शौकत में जीरहे है! मै भी नयी पीढी का पत्रकार था इसलिए पूछ बैठा कि आप कैसा महसूसकर रहीं हैं? उसने कहा कि जिसके बेटों ने उसके हाँथ जलाये हो,वह माँकैसा महसूस कर सकती है? जिन बेटों को नौ माह गर्भ में रखा, कष्ट झेला,गोदी में खिलाया, अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, पढाया लिखाया और उसी नेमेरे हाथ जला दिये अब मै कैसा महसूस कर सकती हूँ! मैंने उससे फिर सवालदगा आप अपने बेटों के लिए क्या कहना चाहती है?माँ का दिल तो विशाल होताहै!बेटा कैसा भी हो, माँ-माँ ही होती है,कहा मेरे बेटे हमेशा खुश रहे औरमें अपने बेटों को कामयाबी कि बुलंदियां छूटे देखना चाहती हूँ!मै चाहतीहूँ कि मेरी जमीन में हरी भरी फसल लहलहाए,चिडियां चाह्चाये, कोयल गीत गएऔर लोग ऐसा नजारा देखकर झूम उठे और खुश रहे!उसकी बात ख़त्म ही हुयी थी,मै फिर पूछना चाहता था कि आपके छोटे कपडे जोतन को नहीं ढक पा रहे है फैशन है या मज़बूरी!उतने में ही पीछे सेहमलावरों का जत्था आता दिखाई दिया,और वह औरत बचाओ-२ चिल्लाती हुई ,आगेचली गयी,शायद इस आस में कि कोई देवदूत आ जाये और इन कातिलों से उसकीरक्षा करे !मै दुखी मन से देखता रहा उस औरत कि ओर,जब तक वह नजर से ओझिलनहीं हो गयी!तभी आवाज आई किशन-किशन,मेरी माँ आ चुकी थी! मैंने उनको प्रणाम किया औरउनका बैग हाथ में लेकर घर वापिस चला आया ! उस आवाज में इतना दर्द,करुनाथी कि पत्थर भी पिघल जाये,लेकिन नहीं पिघले तो वो थे उन दरिंदों केदिल,जो महज कुछ जमीन और अपने अस्तित्व के लिए माँ पर हमला करते रहे! वोमाँ "कृष्णा कब आओगे" कि गुहार लगाती रही लेकिन कृष्णा उसकी कुछ मदद नाकर सका! क्यों कि कृष्णा को मिल गयी थी एक मसालेदार कहानी कल के लिए,जोकरा सकती थी उसका प्रमोशन,उसकी पदोन्नति!आखिर कब तक माँ की अस्मिता को गिरवी रख कर चलता रहेगा पदोन्नति का खेल?कब तक...?

No comments: