Monday, October 20, 2008

मनुष्य और कौवा

सैर करने गया मै
देखते ही देखते
चौराहे पर मर गया कौवा
कुचलकर किसी वाहन से
भीड़ इकट्ठी हो गई
हजारों कौवों की
कोलाहल हो गया
सारी सड़क पर
आगे कत्ल हो गया गली में
किसी इंसान का
देखते ही देखते
बंद हो गई सभी दुकानें
पता न लगा एक भी इन्सान का
सोचने लगा में भी,
क्या कीमत है इन्सान की
गायब हो जाते है
सभी मौत पर इन्सान की
गए सैर करने हम
राह नापते रहे
घर हमारा जल गया
लोग थे की दूर से तापते ही रहे !
-कृष्ण कुमार द्विवेदी

1 comment:

makrand said...

लोग थे की दूर से तापते ही रहे !

bahut dur tak tamacha mara
regards