Friday, July 3, 2009

" समलैंगिक सम्बन्ध " जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा


अब वो दिन दूर नहीं जब पप्पू संग दीपू और मीनू संग सीमा की बारात आप के घरों के बगल से गुजरेगी| भई पहले सुना था पप्पू पास हो गया है लेकिन अब तो दीपू, मीनू, सीमा सभी पास हो गए हैं| अब वो एक दुसरे को फ्लाइंग किस्स देंगे और पुलिस केवल मूकदर्शक बनी देखती रहेगी| भई! अब कौन धारा 14 और 21 का उल्लंघन करे| किसी के निजी कार्य में दखल देने का किसी को अधिकार नहीं है|
बदलते ज़माने के साथ-साथ प्यार की परिभाषा भी बदल रही है| जुहू चौपाटी, विक्टोरिया पार्क में अब दो लड़के और दो लडकियां (माफ़ कीजियेगा वयस्क) इश्क लड़ायेंगे| और उनके मुह से निकलेगा " समलैंगिक सम्बन्ध " जरा जोर से बोलो करंट नहीं लगेगा|

बहुत हो गयी मजाक और मस्ती...

आप और हम सभी जानते हैं कि भारत संस्कृति का देश है|लेकिन आज हमारे देश को क्या हो गया है? ऐसा लग रहा है कि पाश्चात्य संस्कृति के भी कान काट लिए गए हों| चौंकिए मत, ये समाज में चंद लोगों कि वजह से ही हुआ है| बहस का मुद्दा धारा 377| है भी बहस का विषय| 149 साल के लम्बे इतिहास में जो पहले नहीं हुआ वो 2 जून, 2009 को हो गया| समलैंगिक सम्बन्ध को क्लीन चिट दे दी गयी|
अप्राकृतिक! जिसकी भगवान ने भी मंजूरी नहीं दी किसी को| समाज आज जिस चीज को सही नहीं मानता, उसी को रजामंदी दे दी गयी| माना कि सभी को समान हक मिलना चाहिए| इसका मतलब यह तो नहीं कि जो अमानवीय कृत्य कि श्रेणी में आता है उसे नजरअंदाज कर दिया जाये| तो फिर ऐसा क्यों? यह समाज में रह रहे उन लोगों कि मानसिकताओं के साथ बलात्कार है जो कि समलैंगिक सम्बन्ध को सही नहीं मानते|

जरा सोचिये कि आने वाली पीढी पर इसका क्या असर पड़ेगा? कल तक जिस कार्य को अपराध माना जाता था, आज वो अपराध कि श्रेणी में नहीं है| शायद हम ये नहीं जानते कि ऐसे सम्बन्ध को रजामंदी देने से एड्स जैसे खतरनाक बिमारी को न्योता दे रहे हैं|

-अभिषेक राय

6 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

Sateek Chintan.......

naresh singh said...

पहली बार आपके ब्लोग पर आया हू । बहुत सुन्दर बलोग बनाया है । टिप्पणियां कम आती है । जिसका मुख्यकारण है कि आप दूसरे ब्लोग पर भी कम पहूंच पाते है और टिप्पणी देने मे कंजूसी करते है जैसा आप सोचते है वैसा ही दूसरे भी चाहते है । वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा दे इससे टिप्पणी देने मे परेशानी आती है ।

Rajesh Sharma said...

Prakriti bhi waqt ke anusaar badalti rahti hain, Fhalti rahti hain waqt ki jarurato ke hisaab se. Manav-deh ki kuch prakritik jarurate hain, agar wo jarurate prakritik tarike se poori na ho sake to manav prakriti alternative tarike talashne lagti hain, isme kuch bhi aprakritik nahi hain, jarurat hain sochne ke tarike me badlav ki. Haan main ye bhi maanta hoon ki jaanvaro tak me iss tarah ke samlaingik sambandh nahi dekhe jaate, par wo betio ko maa ki kokh me hi nahi marwate. samajh gaye na aap prakriti se khelne ka parinaam...

Chandar Meher said...

The more hue and cry we will make over this subject the more popularit it will get. There is no point discussing it. Although I appreciate your concern over the social cause. Best wishes.
Chandar Meher
Lifemazedar.blogspot.com

Anonymous said...

sabse pehle aapko badhayi achha likha hai. Lekin sayad hum aur aap k kahne aur likhne se kuch nahi hota. Desh vikassheel to hai hi saath saath kuch sambandhon ka bhi vikas hoga na

ADITYA DEV said...

nihsndeh es chinta k visay ne hamari sanskrity ko chita tak la khada kiya hai ..... i agree with u. very good .........