हमारे दैनिक जीवन में चम्मच का बहुत महत्त्व है,चम्मच न हो तो हमारे पाश्चात्य भारत के लोग दाल-भात कैसे खाएँगे?सूप का कैसे लुफ्त उठा पाएंगे?गृहणी खाना कैसे पका पाएँगी?इस समय तो शादी-विवाह का दौर चल रहा है,चम्मच की जगह चमचा का प्रयोग होना लाजिमी है!
देश भी काफी तरक्की कर रहा है,नेताओं की अनुशासनहीनता बदती जा रही है!जो जितना अनुशासनहीन है उसके उतने ही चमचे ज्यादा होंगे!फिर अपने आकाओं की चमचागिरी करके अपनी राजनीति चमकाने की तैयारी करते है!
लेकिन हद तो तब हो जाती है,जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग चमचागिरी करते है!सवाल उठता है,तब ये लोग कैसे जनता की सेवा करेंगे उनका तो ज्यादातर समय बड़े नेताओं की जी-हुजूरी में निकलता है!
लोग चाटुकारिता क्यों करते है?क्या इनमे अपने दम पर चलने की हिम्मत नहीं,या ये मानसिक रूप से विकलांग हो चुके है ?क्या खत्म हो गयी है इनकी गरिमा?क्या हम इतने असहाय हो चुके है कि हमें जुगाड़ की जरुरत पड़ने लगी,और वो भी अपनी इज्ज़त,पद प्रतिष्ठा बेंचकर!खैर जो हो गया सो हो गया,अब आगे से न हो इसलिए ये लिख रहा हूँ
१-एक बार संजय गाँधी की सभा चल रही थी,सभा खत्म होते ही संजय गांधी अपने जुटे ढूंढने लगे,उनके जूते नहीं मिल रहे थे,तभी एक व्यक्ति जूते साफ़ करके लाया और हंसते हुए रख दिए!संजय गांधी अबक रह गए!यह महाशय कोई और नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे!
२-बात उन दिनों की है जब मोहसिना किदवई उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थी,एक सभा चल रही थी,वे पान खाने के बहुत शौकीन थी!उस समय वो हैरान रह गयी जब पान की पीक थूकने के लिए एक व्यक्ति ने अपने दोनों हाथ आगे कर दिए!यह व्यक्ति बाद में प्रदेश कांग्रेस का सचिव बनाया गया!
३-राहुल गांधी के जौनपुर दौरे के समय वे उस समय परेशां हो गए जब वहां के जिलाधिकारी ने उनके पैर छुए!
४-जब झामुमो के अध्यक्ष केन्द्रीय मंत्री के पद से बेदखल हुए और प्रदेश लौटे तो वहां के जिलाधिकारी ने उनके पैर छुए.
इसे अब हम स्वामिभक्ति कहें या चाटुकारिता ?स्वामिभक्ति कह नहीं सकते,क्योंकि वहां का स्वामी कोई और है.मुखिया कोई दूसरा है,फिर क्यों ये चापलूसी?
खैर उद्देश्य चाहे कुछ भी हो,दूसरों को दिखने में भले ही बुरा लगे,लेकिन हाथ तो उनके है और सर भी उनका है,जिनके पैर लगे उनको भी अपना बनाने की कोशिश!उनकी नजर में भले ही वे सही हो,लेकिन उनके इस कारनामे ने आइएएस और आईपीएस अधिकारियों को नेताओं से निचले दर्जे का बना दिया!वे शायद भूल गए कि आइएएस और आईपीएस अधिकारी नेता बन सकते हैं लेकिन एक नेता आइएएस और आईपीएस नहीं!क्योंकि उसके लिए पढ़ा लिखा होना चाहिए और हमारे नेता पढ़े लिखे है ही नहीं!
राहुल गांधी ने भले ही कहा हो कि उनको चापलूसी पसंद नहीं,लेकिन छुटभैये नेता हाजिरी लगाने दिल्ली पहुँच रहे है!बीजेपी में अलग अलग कुनबे हैं लोगों को समझ में नहीं आता कि किसकी चापलूसी करें?
अपने भले के लिए ये नेता चापलूसी करते नजर आते हैं लेकिन जनता की सेवा के लिए इनको सांप सूंघ जाता है!
काश जनता के सेवार्थ ये अफसर और नेता चापलूसी करें तो कितना अच्छा होता..........?
- कृष्ण कुमार द्विवेदी
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