- हृदेश अग्रवाल
आज़ादी के बाद न जानें कितने राजनैतिक दलों ने देश पर शासन किया पर आज भी छोटी-छोटी चीजों के लिए हमें आपस में लड़ता देखा गया है कभी जात-पात, to कभी धर्म के लिए भारत जैसे विशाल देश में सरकार् ने कोई नियम बनाया है कि बाल मजदूरी पर रोक लगाई जाए यह नियम सिर्फ नाम का ही है इस पर अमल कोई नहीं करता आज अपने देश की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि सभी राजनैतिक दल कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य है लेकिन सिर्फ भाषणवाजी में, हकीकत में तो यह बातें सिर्फ कितावों में ही अच्छी लगती हैं क्योकि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी मुद्दे पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपनी रोटी सेकते हैं, और जनता के सामने आते ही उनके हमदर्द बन जाते हैंआज हमारे देश में बाल मजदूरी एक बहुत बड़ा मुद्दा है और हम सभी नागरिकों पर श्राप है जो हम देखते हुए भी मूक बने हुए हैं हर नागरिक कहीं न कहीं रोजाना किसी बच्चों को नौकरी करते हुए देखता है, लेकिन इन दुकान उन दुकान मालिकों के खिलाफ कोई भी आवाज़ उठाने को तैयार नहीं है क्योकि हम इतने नीचे गिरते जा रहे हैं कि उन मासूम बच्चों को नहीं देख सकते हैं 10-12 साल की उम्र में ही अपनी पढ़ाई को छोड़कर काम में लग हुए हैं कुछ होटलों पर यही कोई 10-15 साल की उम्र के बच्चे काम कर हैं, दुकान मालिक उनसे कितना काम कराते हैं उसके मुकाबले तनख्वाह कुछ नहीं देते जरा सी गलती पर उनको अपशब्द बोलते हैं बाल मजदूरी की यह समस्या कोई सरकार या कोई पुलिस नहीं सुधार सकती अगर इसको सुधारना ही होगा तो हम सबको मिलकर, क्योकि हम यही सोचते रहते हैं कि पहले सरकार करे, पुलिस करे बाद में हम, लेकिन इसी सोच ने हम सबको अपनी नज़रों में नीचे गिरा दिया है अदालत ने एक आदेश पारित किया था कि बाल मजदूरी पर रोक लगाए जाए अगर किसी दुकान या मकान में कोई बच्चा मजदूरी करते हुए पकड़ा गया तो उसको जैन और जुरमाना भरना पड़ सकता है अभी हमारे देश में फिलहाल बच्चों पर आधारित कुछ धारावाहिक चल रहे हैं जैसे बालिका वधु, उतरन इन धारावाहिकों में भी बच्चे काम कर रहे हैं जिन पर भी प्रतिबंध लगना आवश्यक है बाल मजदूरी पर न्यायालय का कड़ा रूख छोटे व्यापारी या छोटे तबके के लोगों पर ही नहीं फिल्मी दुनिया पर भी लागू होना चाहिए, लेकिन देश की गरिमा समझी जाने वाली अदालत के इस आदेश को फिल्मी दुनिया सहित आम लोगों ने नकार दिया जो न्यायालय का अपमान है
दूसरा मुद्दा
कई जगह नहीं है शिक्षा
कई गावों में आज भी स्कूल के नाम पर एक कमरा है पर जहां पर पढ़ने वाला कोई नहीं है आज भी देश के ऐसे ही हालात हैं कई शहरों में सरकार व शिक्षा विभाग का कहना है कि छोटे से छोटे गावों में भी बच्चों को शिक्षा मिल रही है, लेकिन शिक्षा के नाम पर बच्चों को स्कूलों में कुछ नहीं मिल रहा क्योकि आज के प्राचार्य छोटी जगहों पर जाना अपनी तोहीन्न समझते हैं कि हम गावों में जाकर पढायेंगे बिल्कुल नहीं, जैसे तैसे अगर चलें जाते हैं तो शिक्षा विभाग में जाकर अपना तबादला शहरों में करवा लेते हैं ऐसे ही कई स्कूल ऐसे भी हैं जहां पर केवल नाम मात्र के ही बच्चे आते हैं क्योकि उनके मां-बाप का कहना है कि बच्चों को पढाये या दो वक्त की रोटी कमाएं, अगर बच्चों को पढ़ते हैं तो घर की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से दो वक्त की रोटी पाना मुश्किल है क्योकि हमारे पास इतना पैसा नहीं कि हम पढ़ा सकें, प्राइवेट स्कूलों के संचालक फीस के नाम पर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, उन्हें नहीं मतलब कि क्या हो रहा है सरकार को चाहिए कि वह ऐसे स्कूलों की जांच के लिए एक कमेटी तैयार करे और दोषी पाए जाने पर स्कूल संचालकों पर उचित कार्यवाही कर सके सरकार नए-नए प्रावधान प्रतिदिन निकालती है पर इस पर अमल नहीं करती सरकार व संबंधित विभाग के मंत्री व sहिक्चा विभाग के सचिव को चाहिए कि वह एक बार सरकारी व अर्धसरकारी स्कूलों की रिपोर्ट भी देखना चाहिए जिससे कि स्कूलों के सही मायने में हालात मालूम सकें
तीसरा मुददा
सड़क के बिगड़ते हालत
प्रधानमंत्री सड़क योजनांतर्गत किसी भी गावों को शहरों से जोड़ा जाता है, लेकिन आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों में कई शहर एवं गावों ऐसे हैं जो आज तक खस्ताहाल बने हुए हैं सड़कों पर गाड़ी चलाना मुश्किल ही नहीं पैदल निकलना भी मुश्किल है इसके साथ ही सरकारें दावा करती हैं कि हमने देश में, प्रांत में जितना विकास किया है उतना कोई दूसरी सरकार नहीं कर सकती सत्ता पक्ष विपक्ष पर आरोप लगाता है कि प्रदेश में सड़क की समस्या है लेकिन विपक्ष जब सत्ता में आता है तो कहता है कि हमारा प्रदेश हर क्षेत्र में सफल है खासकर सड़क में वही सत्ता पक्ष कुछ दिनो पहले तक विपक्ष पर आरोप लगा रहा था कि प्रदेश में सड़कें खस्ता हाल हैं, लेकिन वही सड़क फिर उनके लिए बहुत अच्छी हो जाती हैं सरकार यह क्यों भूल जाती है कि हमने कुछ दिनों पहले क्या कहा था ज्यादा होता है तो सड़क के नाम पर कुछ सड़कें बनवा दी जाती हैं बाकी सब अगले बजट सत्र के लिए रोक दी जाती हैं जैसे कि बजट खत्म हो गया हो, लेकिन यह सब तो एक बकवास है बजट अगर विकास में लगा देंगे तो मंत्रियों की तिजोरियां कैसे भरेंगी
चोथा मुद्दा
पानी की भी प्रदेश में बहुत ज्यादा किल्लत
प्रदेश में जहां देखो वहां पर सबसे बड़ी समस्या है तो वह पानी की है क्योकि कोई भी व्यक्ति रोटी के बिना रह सकता है पर बिना पानी के नहीं लेकिन सरकार का कहना है कि हम पूरी कोशिश कर रहें हैं अगर सूखा पड़ा तो कुछ मुआवजा देकर जनता को खामोश कर दिया जाए सरकार खुद ही विज्ञापन के द्वारा कहती है कि पानी है अनमोल, फिर क्योकि चुकाती है पानी का मोल
पाचवां मुद्दा
दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित करना
देश को आजाद हुए भले ही 60 वर्ष हो गए हैं, सरकार भले ही कहती हो कि हमारे देश में महिलाएं आज पिछड़ी हुई नहीं, बल्कि मर्दों के कन्धों से कंधा मिलाकर आगे निकल चुकी हैं, महिलाएं ही हैं जो चांद तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन उसी देश में आज भी महिलाओं पर अत्याचार, दहेज के लिए प्रताड़ित करना, दलित महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करना यह कहां की परंपरा है, इससे तो वह गुलामी का समय ही अच्छा था कम से कम औरतों पर अत्याचार हाेते थे, फिर भी महिलाएं अपने आप को महफूज समझती थीं आज के दौर में तो महिलाएं अपने आप को कुछ ज्यादा ही असुरक्षित महसूस करती हैं, क्योकि महिलाओं को इस बात का डर रहता है कि आजकल ज्यादातर जॉब के नाम पर महिलाओं से गलत काम करवए जाते हैं कुछ महिलाओं ने पूरी नारी जाती को बदनाम करके रख दिया हैहमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हमारे भारत देश की प्रथम नागरिक खुद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल हैं और भारत की महिलाओं के लिए उन्हें ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे कि महिलाएं अपने आपको पहले जैसा महफूज समझे, और किसी भी स्थान पर जा सकें हमारे देश में महिला संगठन बने हुए हैं कि महिलाओं के Dपर किए गए आत्याचारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो सके और महिलाओं को आसानी से न्याय मिल सके कुछ नारियों को न्याय न मिलने की वह से उनके शासन एवं प्रशासन के प्रति आक्रोश है अभी हाल ही में एक और ताजा मामला देखने को आया जिसमें हरियाणा स्थित जिंद नामक जगह पर पुलिस विभाग के एक सब इंस्पेकटर ने एक लड़का-लड़की को सिर्फ इसलिए बुरी तरह् पीटा इतना ही नहीं उस लड़की को सरेआम सड़क पर बाल पकड़कर घसीटते हुए थाने तक लेकर गया और वहां पर खड़ी जनता ने उस पुलिस वाले या पुलिस विभाग का विरोध नहीं किया बल्कि मूक बने हुए तमाशा देखती रही वहीं सन 2008 में असम स्थित सीलिगुड़ी में देखने को मिला जिससे आदिवाशी महिलाओं को निवस्त्र कर सड़क पर पूरे नगर के सामने नंगा घुमाया गया, पुरूषों एवं पुलिस द्वारा उनको रोड पर घसीट कर मारा गया भारत में इस घिनोनी हरकत को मीडिया द्वारा दिखाया गया एवं भारत की जनता इस मूक होकर देखती रही लेकिन उन महिलाओं के प्रति किसी भी महिला संगठन, हिन्दू संगठन, सरकार या राष्ट्रपति द्वारा उन पुलिस आरोपियों के खिलाफ न तो कोई कार्यवाही हुई न ही उन्हें बर्खास्त किया गया यह है हमारे देश का कानून जो वास्तव में अंधा बना हुआ है जिसे हमारी सरकार नहीं देख सकती है
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मेरे जानकार दो मित्र वकील हैं दिल्ली के पटियाला हाउस में। लाखों की कमाई है - प्रैक्टिस बहुत जमकर चलती है। कानून के रखवाले इन वकीलों के घर में बिहार से "मंगवाया" गया एक बच्चा ५ साल की उम्र से काम कर रहा है। आज वह १९ साल का हो चुका है - १४ साल तक उसने बिन-पैसे दोनों वकील भाइयों की गुलामी में अपना बचपन रौंद दिया। जब वकील ही बाल-मजदूरी के कानूनों की धज्जियां उड़ाएंगे तो आम आदमी क्या करेगा?
जैसा आप कह ही चुके हैं, ये मुद्दे कोई नये नहीं है, लेकिन फिर भी इनका निपटान नहीं हो सका। निपटान के लिये जरूरी है कि "चलता है" की प्रवृत्ति से बचें, और हर बात पर मूलभूत तरीके से विचार करके सही फैसला लें।
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