हे पार्थ (कर्मचारी)
- हृदेश अग्रवाल
इनक्रीमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ
इनसेंटिव नहं मिला, ये भी बुरा हुआ...
वेतन में कटौती हो रही है बुरा हो रहा है....
तुम पिछले इनसेंटव ना मिलने का पश्चाताप ना करो,
तुम अगले इनसेंटिव की चिंता भी मत करो,
बस अपने वेतन में संतुष्ट रहो...
तुम्हारी जेब से क्या गया, जो रोते हो?
जो आया था सब यहीं से आया था...
तुम जब नहीं थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी,
तुम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी,
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे...
जो अनुभव मिला यहीं मिला...
जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया,
डिग्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे...
जो कम्प्यूटर आज तुम्हारा है,
यह कल किसी और का था...
कल किसी और का होगा और परसों किसी और का होगा...
तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो... क्यों खुश हो...
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है...
क्यों तुम व्यर्थ चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो,
कौन तुम्हें निकाल सकता है...?
सतत ‘नियम-परिवर्तन’ कंपनी का नियम है...
जिसे तुम ‘नियम-परिवर्तन’ कहते हो, वही तो चाल है...
एक पल में तुम बैस्ट परफॉर्मर और हीरो नंबर वन या सुपर स्टार हो जाते हो...
दूसरे पल में तुम वर्स्ट परफॉर्मर बन जाते हो और टारगेट अचीव नहीं कर पाते हो।
ऐप्रेजल, इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है, और तुम कंपनी के...
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए है
ना तुम इसके लिए हो,परन्तु तुम्हारा जॉब सुरक्षित है
फिर तुम परेशान क्यों होते हो....?
तुम अपने आप को कंपनी को अर्पित कर दो,
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता... बस मन लगाकर अपना कर्म किए जाओ
यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है
जो इस गोल्डर रूल को जानता है वो ही सुखी है...
वोह इन रिव्यू, इनसेंटिव, ऐप्रेजल, रिटायरमेंट आदि के बंधन से सदा के लिए हटा दो
तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो और खुश रहो....
“Every sucessfu’’ person have a painfu’’ story so accept............
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