मै बचपन से ही विचारक प्रवृत्ति का रहा हूँ...लेकिन अभी तक कोई माध्यम नही मिला जिससे कि दिल कि आवाज़ को लोगों तक पंहुचा सकूँ !लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के बाद विचारो को अभिव्यक्त करने का जज्बा भड़क उठा और लोगों से जुड़ने का अच्छा माध्यम लगा ब्लॉग और बना लिया विचारो को लिखने का आशियाना...
Thursday, February 12, 2009
संतों की वाणी
जिएं ऐसे की कल हो अंत, सिखें इतना की जीवन हो अनंत। दहेज मांगकर आप अपना सम्मान तो खोते ही हैं, साथ ही भिखारी होने का प्रमाण भी देते हैं। क्रोध से मनुश्य दूसरों की बेइज्जती ही नहीं करता, बल्कि अपनी प्रतिश्ठा भी गंवाता है।
No comments:
Post a Comment