पूंजीवाद
-अनाम
बंदरवाला
हाथ नचा-नचाकर
बजाए जा रहा था डमरू
डिग-डिग, डम-डम
उछलता-कूदता, पीछे-पीछे
बच्चों का मस्तमौला झुंड !
दिखी अट्टालिका सामने
डाल दी पोटली
लगा जोर-जोर से बजाने
डिम-डिम डमरू
गाने लगा साथ-साथ
नाच मेरी बुलबुल..!
होने लगी
चवन्नी-अठन्नी की
पतझड़-सी बारिश
हनुमान जी समझकर
खिलाने लगे लोग बंदर को
केले-रोटी ।
भांति-भांति के करतब
दिखाए जा रहा था बंदर
बढ़ने लगी भीड़ धीरे-धीरे
एक क्षण के लिए रुका बंदर
पतली छड़ी पड़ी उस पर
सटाक…..!
बेचारे बंदर ने दृष्टि डाली
पहले अपने मालिक पर
फिर सिक्कों पर
नम हो गईं उसकी आंखें
शायद समझ गया था वह
पूंजीवाद का अर्थ..!
3 comments:
बढिया रचना है बधाइ।
achi kavita hai, swagat.
आपने बहुत यथार्थ का वर्णन किया है आपकी चिंतन शैली लाज़बाब और शब्द रचना अत्यन्त सुंदर है आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है // आपको मेरे ब्लॉग पर काव्य रस के आनंद हेतु आमंत्रण है
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